हनुमान जी का प्रशिद्ध मंदिर
अंदर भक्तों की भीड़
आरती और जयकारों से
गूंजता मंदिर।
बाहर सीढ़ियों के पास
भिखारियों की
लम्बी कतारें
पंक्तिबद्ध बैठे हैं भिखारी
सामने तसलों की कतारें।
भक्तगण
आते हैं बाहर
फेंकते है चंद सिक्कें
गिर जाते हैं
कटोरों के भीतर-बाहर।
मन में नहीं है भाव
कि इनको भी दें आदर से
असमर्थों का मान भी
बढ़ाया जा सकता है
हाथ में देकर प्यार से।
( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )
सटीक ... जो दें प्यार और श्रद्धा से . सार्थक सन्देश .
ReplyDeleteधन्यवाद संगीता जी।
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