हवा के शीतल झोंकों की
तरह माँ- बाप को
प्यारी होती हैं बेटियाँ
घर खुशी से महक उठता है
जब हँसती और
मुस्क़ुराती हैं बेटियां
मर्यादाओं की सीमाओं
और संस्कारों में
पली-बड़ी होती हैं बेटियां
बड़ी होने से पहले ही
समझदार हो कर
समझदार हो कर
आगे निकल जाती हैं बेटियां
गले में बांहों क़ा झूला बना
माँ को बचपन याद
करा देती हैं बेटियां
करा देती हैं बेटियां
कोयल की तरह मधुर
स्वरलहरी सुना
एक दिन उङजाती है बेटियां
दीवार पर अपने पीले हाथों
के निशान लगा
के निशान लगा
आँगन छोड़ चली जाती है बेटियां।
ससुराल में पत्नी, बहू
दिवरानी, भाभी
जैसे रिश्ते फिर निभाती हैं बेटियां।
कोलकत्ता
११ अगस्त,२०११
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )