Tuesday, January 15, 2013

गाँव का कुआ





गाँव के कुए में
जब तक पानी रहा
पुरे गाँव के घरों में
मूणं, मटका, घड़ा भरा रहा

पनिहारिने सज-धज कर
पानी लाने जाती रही
पायली झंकार से गाँव की
गलियाँ जंवा होती रही

लेकिन जब से नल आया
गाँव की रौनक चली गयी
पनघट के पीछे गाँव की
गलियाँ भी सुनी हो गयी

अब तो पानी भी नलो में
बूंद बूंद कर के आता है
गाँव वालो के दिलो में
अगन सी लगाता है

मचा हुआ है गाँवो में
पानी के लिए हाहांकार
न जाने कब आएगी गाँवों मे
फिर से पानी की बहार।



  [ यह कविता "कुछ अनकही***" में प्रकाशित हो गई है। ]



Wednesday, January 9, 2013

चौथ का चाँद


पत्नियाँ आज चौथ का
व्रत रखेगी

आकाश में आज
चौथ का चाँद निकलेगा,
जमीन का चाँद
आसमान के चाँद को देखेगा।

पतियों के लिए
मंगल कामना करेगी,
चाँद को देख कर
व्रत का समापन करेगी।

चाँद निकलने में 
ज्यादा ही देर कर रहा है,
वो सजने-सँवरने
में ही लग रहा है।

उसे पता है धरती पर 
उसका इन्तजार हो रहा है,
इसीलिए आज वो कुछ 
ज्यादा ही अकड़ रहा है।

लेकिन आज उसकी
सारी अकड़ निकल जायेगी,
जब देखेगा मेरे चाँद को
दांतों तले अंगुली दब जायेगी।


14 अक्टूम्बर ,2011
पिट्टस बर्ग (अमेरिका)





Monday, January 7, 2013

केट-वाक




हँसती, मुस्कराती, इठलाती
ख़ुशी से थिरक रही है
लडकिया केटवाक् करती।

रंग-बिरंगी पोशाके पहने
कर रही है फैशन सौ
चाल में जादू दिखाती।

मंद, तेज चाल चलती
होठों पर मुस्कान लिए
अपनी प्रतिभा को दिखती।

लाडली
तुम्हारे जीवन की
घड़िया बीते ठण्डी
छाँव में।

दुःख का कोई कांटा
कभी भी नहीं लगे
तुम्हारे पाँव में।

जीवन की डगर पर
इसी तरह केट-वाक
करती रहो।

सपनों को साकार
करती  आगे तुम
बढ़ती रहो।



नोट ;- मेरी पोती राधिका ने 25 दिसम्बर 2012 को मणिकरण, कोलकता में अपनी सहेलियों के साथ स्टेज पर केट-वाक किया था, जिसे बहुत पसंद किया गया। मुझे भी उसने अपना वीडियो भेजा था।
उसने मुझे कहा की यदि आपको मेरा प्रयाश अच्छा लगे तो मुझे कविता लिख कर आशीर्वाद देना।


असीम स्नेह व शुभकामनाओं के साथ
दादा- दादी

पीट्सबर्ग (अमेरिका)
7 जनवरी, 2013




Friday, January 4, 2013

मुझे नया जीवन दिया




साँसे लगी जब साथ छोड़ने
         विस्वास हुवा मेरा धूमिल
                  जीने का अरमान जगा कर
                         आत्म बल से पूर्ण किया
                                मुझे नया जीवन दिया।


डूब रही थी जीवन नैया
          टूट रही थी जीवन डौर
                होंसलों का थमा दामन
                        मेरे जीवन को बचा लिया
                                 मुझे नया जीवन दिया।


रंग उड़ गए सब सतरंगी
          तार-तार हर साँस हो गयी
                   आस्था का देकर सम्बल
                          मेरे संसय को दूर किया
                                 मुझे नया जीवन दिया।



देख रही मै साँसों की गति
        जो थी अब साथ छोड़ रही
                 बुझते दीपक सी लगी झपकने
                         आपने मुझे आश्वस्त किया
                                 मुझे नया जीवन दिया।


टूटती हुयी मद्धम साँसों में
         हर सांस थरथराई पारे सी
               रहबर बन कर आये आप
                        लगा लंग्ज उपकार किया 
                                मुझे नया जीवन दिया। 



यह कविता डॉक्टर के प्रति आभार स्वरूप लिखी गई है, जिसने यह महान कार्य किया।  

  [ यह कविता "कुछ अनकही***" में प्रकाशित हो गई है। ]



Sunday, December 30, 2012

सार-सार को गहि रहै


वृद्ध होने के लिए बालो का
सफ़ेद होना जरुरी नहीं है,
मन में निराशा का संचार
होना ही प्रयाप्त है।

जीवन को इस तरह से
जीवो कि हमारा बुढ़ापा
और बच्चों का यौवन
दोनों की गरिमा बनी रहे।

अभिमान और विनम्रता दोनों
का पिता एक है किन्तु माँ दो है
अभिमान की जननी अहं है
विनम्रता की जननी सदाचार है।

रोता तो आसमा भी है
अपनी जमीन के लिए
मगर हम उसे
बरसात समझ लेते है।

पहाड़ो की चोटियाँ भी
पांवों तले आ सकती है,
लेकिन जरुरी है
पहाड़ो के भूगोल से कहीं ज्यादा
हौंसलो का इतिहास पढ़ा जाए।

आजन्म इच्छाऐ मरती नहीं
चाहत बढती जाती है जीने की ....
फिर मोक्ष कैसा। 

अभिमान,
बुद्धि से पहले पैदा होता।

चाँदनी को चाँदनी भी
कह सकते हो
उसे रात कि गोद में सवेरा
भी कह सकते हो।


(मेरी पढ़ी पुस्तको से कुछ वाक्य,जो मेरे दिल को छूने में सक्षम रहे, शायद आप भी पसंद करे।)


सार-सार को गहि लहै












Thursday, December 27, 2012

मानवता बच जायेगी




आकाश के
दिलकश नजारों को
प्रदुषण ने छीन लिया

रातों की
नींद को ट्रकों की
चिल्लपौं ने छीन लिया

फलों का
स्वाद फर्टिलाईजर 
ने छीन लिया

बच्चों  के
बचपन को होमवर्क
ने छीन लिया

परिवार की
  एकता को महंगाई   
 ने छीन लिया

दादी की
कहानियों को टी वी
 ने छीन लिया

पक्षियों के
कलरव को टावरों
ने छीन लिया

आपसी प्यार को
 अहम् की संकीर्णता
 ने छीन लिया

दुनिया के अमन
चैन को आतंकवाद
 ने छीन लिया

देर सवेर सही
 लेकिन एक दिन
यह बात समझ में आयेगी।

जीतनी जल्दी
समझ में आएगी
मानवता बच जायेगी।




  [ यह कविता "कुछ अनकही***" में प्रकाशित हो गई है। ]

Sunday, December 16, 2012

जीवन की कैसी विडम्बना है ?


                              
कहीं सुख का झरना बह रहा है
कहीं दुखों का पहाड़ टूट रहा है
 कोई विजय का जश्न मना रहा है        
 कोई हार का मातम मना रहा है                           
      जीवन की कैसी विडम्बना है ?

 किसी के घर गीत गाये जा रहे है       
किसी के शोक मनाया जा रहा है 
    कोई मँहगी कार में घूम रहा है                  
   कोई नगें पाँव पैदल चल रहा है                   
       जीवन की कैसी विडम्बना है ?   

     किसी का घर जगमगा रहा है                               
  किसी के यहाँ अन्धेरा छा रहा है     
    कोई ऐ.सी. बँगले में सो रहा है   
   कोई फ़ुटपाथ दिन काट रहा है     
       जीवन की कैसी विडम्बना है ?

   कोई फ़ाइव स्टार में खा रहा है   
   कोई जूठन में खाना ढूँढ रहा है     
     कोई सफलता पर झूम रहा है 
     कोई असफलता पर रो रहा है 
        जीवन की कैसी विडम्बना है ?



( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )