गाँव के कुए में
जब तक पानी रहा
पुरे गाँव के घरों में
मूणं, मटका, घड़ा भरा रहा
पनिहारिने सज-धज कर
पानी लाने जाती रही
पायली झंकार से गाँव की
गलियाँ जंवा होती रही
लेकिन जब से नल आया
गाँव की रौनक चली गयी
पनघट के पीछे गाँव की
गलियाँ भी सुनी हो गयी
अब तो पानी भी नलो में
बूंद बूंद कर के आता है
गाँव वालो के दिलो में
अगन सी लगाता है
मचा हुआ है गाँवो में
पानी के लिए हाहांकार
न जाने कब आएगी गाँवों मे
फिर से पानी की बहार।
[ यह कविता "कुछ अनकही***" में प्रकाशित हो गई है। ]
No comments:
Post a Comment