जका को कदैइ
की नी देखोड़ो हुवै
अर जे थोड़ो-घणो
बापर ज्यावै
बो खुद ने
फैर अणुतो ही
हुंस्यार समझण
लाग ज्यावै
जै कदास कोई बात
पूछ बैठे जणासं सोचै
म्हारे में काइंठा
कतीक ऊरमा है
आनी सोचै
गरज पड्या लोग
गधा ने भी
बाप बणावै है
सागला
आप-आपरे
मतलब सूं
स्यांणा हुवै है।
[ यह कविता "एक नया सफर " में प्रकाशित हो गई है। ]
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