Thursday, April 1, 2021

स्मृति मेघ

छा रहे हैं स्मृति मेघ 
       मेरे मन-पटल पर
             भूल पाना है कठिन 
                    एक पल भी भूल कर। 


आज भी खुशियाँ बिखेरे 
        प्रिय ! स्मृति मेघ तुम्हारे 
             खुशियों के फूल खिलाये
                   जीवन की राहों पर मेरे। 

तेरे गीतों की सरगम पर 
     मैंने यह साज उठाया है
              तेरी यादों के साये में 
                   ये स्मृति मेघ रचाया है।  

इन स्मृति मेघ के छन्दों में
      बस याद तुम्हारी बनी रहे
           मेरे मन की सीमाओं पर 
               तेरी ही प्रिये! पहचान रहे।


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Sunday, March 28, 2021

गांव बदल गया है

बाजरी की रोटी
      दूध भरा कटोरा 
            कहीं खो गया है
                  गांव शहर चला गया है। 

चौपाल की बैठक 
       चिलमों का धुँवा 
             कहीं खो गया है 
                     गांव शहर चला गया है। 

गौरी की चितवन 
       गबरू का बांकापन 
              कहीं खो गया है 
                     गांव शहर चला गया है। 

होली की घीनड़ 
      गणगौर का मेला 
            कहीं खो गया है 
                   गांव शहर चला गया है। 

बनीठनी पनिहारिन 
       ग्वाले का अलगोजा 
               कहीं खो गया है 
                      गांव शहर चला गया है। 
आँगन में मांडना 
       सावन में झूला 
             कहीं खो गया है 
                     गांव शहर चला गया है। 


( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )















Saturday, March 13, 2021

सुनहरी यादें

याद आती बचपन की बातें 
प्यार भरी वो सुनहरी  यादें। 

बारिश के पानी में उछलना
मेंढक को देख चीखें लगाना   
कटी पतंगों के पीछे दौड़ना 
दीपक की रौशनी में पढ़ना। 

थैला लेकर स्कूल को जाना 
थूक लगा स्लेट साफ़ करना 
नई किताबों पर गते चढ़ाना
पहाड़े बोल कर याद करना। 

दोस्तों के साथ कंचा खेलना 
फूल पर से तितली पकड़ना
अपने भाई को घोड़ा बनाना 
दादी से  रोज कहानी सुनना। 

होली में सबको रंग लगाना 
सावन में खूब झूले झूलना 
तीज पर मेला देखने जाना 
दिवाली पर पटाखें छोड़ना। 

याद आती बचपन की बातें 
प्यार भरी वो सुनहरी  यादें। 


( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )

Thursday, February 25, 2021

कलात्मक सृजनता


ताल 
कानाताल 
पौड़ी गढ़वाल का 
सुन्दर, शांत इलाका 
छोटा -सा बाजार। 

दो दिन से लगातार 
हो रहा है हिमपात 
लगता है जैसे काश के 
फूलों को बिछा दिया
गया है चहुँ ओर 

पहाड़ों पर छितरे हैं 
दूर-दूर तक मकान 
छतों पर पड़ी हिम 
चमक रही है धूप में 

देवदार के पेड़ 
क्रिसमस ट्री बन गए हैं
झर रही है हिम रुई की तरह 
हवा के हल्के झोंके से 

हिम से ढके पहाड़ 
चमक रहे हैं सूर्योदय 
के समय सोने की तरह 

पर्यटकों का मन मोह रहे हैं 
बर्फीली वादियों के नज़ारे 
चाँदी से गुलज़ार हो गए 
देवभूमि के पर्वत 

प्रकृति ने एक सफ़ेद चादर 
चांदनी की तरह ओढ़ रखी है 
जैसे चाँद अपनी चांदनी 
को छोड़ गया हो 

चारों ओर बिखरा पड़ा है 
प्रकृत्ति का अनुपम सौन्दर्य 
मन को मोह लेती है यहॉं की 
कलात्मक सृजनता। 

( कानाताल में रहते हुए चार फ़रवरी, २०२१ )

( यह कविता स्मृति मेघ में प्रकाशित हो गई है। )

Thursday, February 11, 2021

युग बीत गया

घर की छत पर सोने 
टूटते तारों को देखने 
चांदनी में नहाने को 
मन तरस गया 
एक युग बीत गया। 

झाड़ी से बेरों को तोड़ने 
नीम की छाँव तले बैठने 
अलगोजा सुनने को 
मन तरस गया 
एक युग बीत गया।  

बणीठणी पणिहारी देखने
शादियों में टूंटिया देखने
मेले में घूमने को 
मन तरस गया 
एक युग बीत गया।

गोधूलि में घुंघरु सुनने
मौर का नाच देखने
ऊँट पर चढ़ने को
मन तरस गया 
एक युग बीत गया।  

पायल की छमछम सुनने 
घूँघट से टिचकारी सुनने  
चूड़ियों से पानी पीने को  
मन तरस गया 
एक युग बीत गया।  


Friday, January 15, 2021

दीवार पर टँगा हुआ चित्र

तुमसे बिछुड़ कर 
मैंने पहली बार अनुभव किया है कि 
बिना जान भी जिया जा सकता है
और मैं तनहाई में जिन्दा हूँ। 

मेरे जीवन में 
कोई अस्तित्व का पल नहीं 
जो तुमने छुवा न हो 
कोई सांस नहीं जिसमें 
तुम्हारा अहसास न हो 
कोई याद नहीं जिस पर 
तुम्हारा हस्ताक्षर न हो। 

असीम आनन्द था तुम्हारे सानिध्य में 
जहां भी जाता सदा तुम्हारी 
खुशबू मेरे साथ रहती 
अब मेरा कहने को कुछ नहीं बचा है ?

मेरी यादों का घूँघट भी 
अब धुंधला होता जा रहा है
तुम होती तो क्या होता पता नहीं 
बस खो जाता बाँहों में
निहारता रहता आसमान में चाँद को 

अब तो मैं एक खाली कमरे जैसा हूँ 
या शायद दीवार पर टँगा हुआ चित्र। 




 ( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )


Wednesday, January 13, 2021

तुम्हारी यादों के संग सफर

छुट्टियों के बाद 
मेरा कॉलेज में पढ़ने के लिए जाना 
तुम्हारी आँखों में बादलों का उमड़ना 
आज भी याद आता है। 

मेरे कॉलेज से लौटने पर 
दरवाजे पर आँखों का टकराना 
दिलों में प्यार का उमड़ना 
आज भी याद आता है। 

घर की छत पर 
लम्बे बालों को संवारना 
अप्रतिम सौन्दर्य कोबिखेरना   
आज भी याद आता है।  

हिमालय की वादियों में 
एक हाथ में तुम्हारा हाथ पकड़ना 
दूसरा बादलो के कंधे पर रख घूमना 
आज भी याद आता है। 

गीता भवन के घाट पर 
गंगा की लहरों संग खेलना 
नाव में बैठ पानी को उछालना  
आज भी याद आता है। 

सागर के किनारे 
नंगे पांव लहरों के संग दौड़ना 
ढेर सारी सीपियाँ चुन कर लाना 
आज भी याद आता है। 

पार्क में घूमते हुए 
हलके से उंगलियों को दबाना 
मेरा अल्हड़ आँखों में झांकना 
आज भी याद आता है। 





  ( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )