Sunday, October 28, 2012

क्या वह लमहा तुम्हे याद है ?





जब हम गंगा में
माटी के दीपक
प्रवाहित करते और
देखते रहते कि किसका
दीपक आगे निकलता है
क्या वह लमहा तुम्हे याद है ?


जब हम सागर से 
सीपिया चुन-चुन कर 
इकट्ठी करते और
देखते रहते कि किसकी
सीपी से मोती निकलता है
क्या वह लमहा तुम्हे याद है ?


जब हम झील के किनारे बैठे  
बादलो की रिमझिम फुहारों में
भीगते रहते और तुम कहती 
ये पहाड़ कितने अपने लगते हैं
क्या वह लमहा तुम्हे याद है ?
  

जब हम चाँदनी रात में
छत पर सोते और आसमान का
नजारा देखते रहते
टूटते तारों को देख कर तुम कहती
तारों का टूटना मुझे अच्छा नहीं लगता
क्या वह लमहा तुम्हे याद है ?



 [ यह कविता "एक नया सफर" में प्रकाशित हो गई है। ]




Wednesday, October 24, 2012

फाल का मौसम -पिट्सबर्ग





सुबह धना कोहरा
दिन में हलकी बारिश
शाम को गुलाबी ठण्ड
रात में चमचमाते जुगनू

परिधान बदलती धरती 
रंग-बिरंगे पेड़ पौधे
दौड़ते हुए हस्ट-पुस्ट
लडके-लड़कियां 

हरी-भरी वादियाँ
ऊँचे पर्वतों पर
अठखेलियाँ करती
काली घटायें 

मोनोंगैहेला नदी और
ऐलेगनी का संगम स्थल 
ओहियो के उदगम पर    
मनभावन सूर्योदय

फाल के मौसम  में
धरती का स्वर्ग
बन जाता है
पिट्सबर्ग।


  [ यह कविता "कुछ अनकही***" में प्रकाशित हो गई है। ]
  

Monday, October 22, 2012

हम किधर जा रहे है ?

आज इन्सान की हँसी
लोप होती जा रही है 
जैसे लोप होती जा रही है
नाना- नानी की कहानियाँ। 

आज इन्सान का प्रेम
लोप होता जा रहा है
जैसे लोप होती जा रही है
चन्दा मामा की कहानियाँ।

आज इन्सान की  करुणा  
लोप होती जा रही है 
जैसे लोप होती जा रही है
परियों की कहानियाँ।

आज इन्सान की शांति
लोप होती जा रही है
जैसे लोप होती जा रही है
राजा-रानी की कहानियाँ।

प्रगतिशील युग की तरफ
जाने के लिए  इस तरह की
सीढियाँ तो नहीं हो सकती
फिर हम किधर जा रहे है ?

    #######


Thursday, October 4, 2012

किसी दिन

सावन का महीना होगा
         गाँव का घर होगा
                मिट्टी के आँगन में
                     तुम्हारी पाजेब की रुनझुन
                                       सुनेंगे किसी दिन 


लहलहाती फसले होंगी
         हवाओं में खुशबू होगी
                  वर्षात में भीगते हुए
                          खेत में साथ-साथ
                                     चलेंगे किसी दिन 


तारों भरी रात होगी
         चाँद की गोद होगी
                  शबनमी रात में
                           तुम्हारी प्रणय राग
                                    सुनेंगे किसी दिन 


कश्मीर की वादियाँ होगी
        केशर की क्यारियाँ होगी
                 कमल खिली झील में
                          साथ बैठ कर सैर
                                   करेंगे किसी दिन


गोधुली बेला होगी
        आरती का समय होगा
                  पास के मंदिर में जाकर
                        भगवान के सामने दीया
                                जलायेगें किसी दिन


खुशबू भरी शाम होगी
         तुम मेरे पास होगी
                जुगनू की कलम से
                       तुम्हारे लिए एक कविता
                                   लिखेंगें किसी दिन।



  [ यह कविता "एक नया सफर" में प्रकाशित हो गई है। ]

Wednesday, September 19, 2012

मांडवी


तुलसीदासजी ने रामायण में
मांडवी के त्याग और विरह
वेदना का उल्लेख नहीं किया

उन्होंने केवल सीता के त्याग
और लक्ष्मण के भ्रातृ प्रेम का
ही प्रमुखता से वर्णन किया 

मैथली शरण गुप्ता ने भी
साकेत में मांडवी के त्याग
को महत्त्व नहीं दिया

उन्होंने केवल उर्मिला की
विरह वेदना का ही साकेत
में उल्लेख किया

सीता को तो वन में रह कर भी
अपने पति के साथ रहने का
अवसर मिला 

लेकिन मांडवी को तो अयोध्या
में रह कर भी पति के सामीप्य
का सुख नहीं मिला 

भरत चौदह साल तक परिवार
से दूर जंगल में पर्ण कुटी
बना कर अकेले रहे

फिर मांडवी के त्याग को
सीता के त्याग से कमतर
क्यों आंका गया ?

मांडवी की विरह वेदना को
उर्मिला की विरह वेदना से
कमतर क्यों समझा गया ?

एक दिन फिर कोई
तुलसीदास जन्म लेगा
फिर कोई मैथली शरण आयेगा

जो मांडवी के दुःख दर्द को
नए आयाम और
नए अर्थों में लिखेगा।



[ यह कविता "एक नया सफर " पुस्तक में प्रकाशित हो गई है। ]





Sunday, September 16, 2012

विसमता



पेट भरते ही पक्षी दाना
छोड़  कर उड़ जाते हैं
वो भविष्य की नहीं सोचते
केवल वर्तमान में जीते हैं  

इंसान वर्तमान में नहीं
भविष्य में जीता है और
आने वाले कल की चिंता
सबसे पहले करता है

इसी कारण पक्षियों में   
आज भी समानता है
और इन्सानों में अमीर
गरीब जैसी विषमता है 

मानव को प्रकृती ने
खुले हाथों से दिया है 
सबके लिए समान
रूप से दिया है 

काश ! हम सब मिलझुल कर
दुनियाँ में रह पाते
दुनिया से इस विषमता
को मिटा पाते।




[ यह कविता "एक नया सफर " पुस्तक में प्रकाशित हो गई है। ]|

Saturday, September 15, 2012

जीवनदानी




हे जीवनदानी !
तुमको सत-सत
नमन 

तुम तो अनेक के
जीवन दाता बन कर 
सदा सदा के लिए
अमर हो गए

तुमने आँखे देकर 
किसी को दृष्टी दी
अपना दिल देकर 
किसी को धड़कने दी 

अपने फेफड़े देकर 
किसी को सांसे दी
गुर्दे देकर किसी को
जीवन की आशाएं दी 

हे महादानी
हे गुप्तदानी

हम सब ऋणी
रहेंगे तुम्हारे 
सदा-सदा के लिए  

जाओ अब तुम 
महाप्रयाण करो
स्वर्ग में निवास करो 

देखो  सभी देवता
तुम्हारे स्वागत
के लिए खड़े हैं

अप्सराऐं
तुम्हारे लिए फूलों की
वर्षा कर रही है 

अलविदा महादानी
अलविदा जीवनदानी।



  [ यह कविता "कुछ अनकही***" में प्रकाशित हो गई है। ]