कलकल करते झरनों में गीत है
गड़-गड़ करते बादलो में गीत है
पंछियों की आवाज में गीत है
लहलहाती फसलों में गीत है
घाटियों की सांय-सांय में गीत है
नदियों के निनाद में गीत है
समुद्र के जलघोष में गीत है
सनसनाती हवाओं में गीत है
सनसनाती हवाओं में गीत है
भंवरों के गुंजन में गीत है
चिडियों के चहचहाने में गीत है
चिडियों के चहचहाने में गीत है
पपीहा के बोलने में गीत है
कोयल के मीठे स्वर में गीत है
प्रकृति में सर्वत्र गीत ही गीत है
लेकिन हमारे गीत कहाँ है ?
हम क्यों नहीं गीत गा रहे हैं ?
हमारी जिन्दगी के गीत कहां हैं ?
लोकगीत और भक्ति गीत कहाँ हैं ?
बाल गीत और खेल गीत कहाँ हैं ?
शौहर गीत और गाथा गीत कहाँ हैं ?
मेहंदी गीत और मेले के गीत कहाँ हैं ?
जन्म का जलवा गीत कहाँ हैं ?
विवाह के विदाई गीतगीत कहाँ हैं ?
सावन के बरखा गीत कहाँ हैं ?
चैत्र मास चैत्रा गीत कहाँ हैं ?
चैत्र मास चैत्रा गीत कहाँ हैं ?
तीज और होली के गीत कहाँ हैं ?
गणगौर और झूलों के गीत कहाँ हैं ?
चरखा और चक्की के गीत कहाँ हैं ?
कजली और लावनी के गीत कहाँ हैं ?
प्रकृति अपने हर रंग में गा रही है
हमें भी गाने के लिए कह रही है
आओ हम फिर से अपने गीत गायें
जिन्दगी को गीतों के साथ गुनगुनायें।
कोलकत्ता
२ जुलाई, २०११
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
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