एक देगची
चावल दो
नहीं पके
तीन दिन वो
चार कबूतरोंतीन दिन वो
को बुलवाया
पाँच दिनों तक
पानी भरवाया
छः चिडियाँ
पानी भरवाया
छः चिडियाँ
बिनने को आई
पंखा झलवाया
आठ चूल्हों
पर उसे चढ़ाया
नौ मन लकड़ीपर उसे चढ़ाया
हाथी लाया
देख रहे थे
दस -दस बच्चे
दस -दस बच्चे
फिर भी चावल
रह गए कच्चे
रह गए कच्चे
कृष्णा ने सबको
को समझाया
को समझाया
खेल-खेल में
पाठ पढ़ाया।
पाठ पढ़ाया।
कोलकत्ता
२१ जुलाई, २०११
[ यह कविता "एक नया सफर " में प्रकाशित हो गई है। ]
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