Tuesday, July 26, 2011

मेरी माँ

माँ
जिसके उच्चारण मात्र
से ही मुँह भर जाता है 

जिससे मांगने के लिए कभी
शब्दों की जरुरत नहीं पड़ती है

जो हरपल घर का पूरा
ख्याल रखती है

वो माँ
अचानक हम सब को
छोड़ कर चली गयी

माँ के जाने के बाद 
कँही कुछ नहीं बदला है 
केवल माँ का कमरा खाली हो गया है 

आज जब भी
माँ की स्मृति आती है
आँखों से अश्रुधारा बहने लग जाती है 

जब मै छोटा था,
पढ़ने दूर शहर में जाता था
माँ अश्रुपूर्ण नेत्रों से दूर तलक
पहुंचाने जाती थी

छुट्टियों में जब
घरआता तब माँ की
आँखों में ख़ुशी के अश्रु
टपक पड़ते थे 

कलकत्ते में
जब तक रात को
घर नहीं पहुँच जाता
माँ खिड़की के पास खड़ी
राह देखती रहती

चाहे जितनी रात हो जाती
माँ की आँखे राह से
नहीं हटती 

माँ के अचानक
चले जाने का
वह अकल्पित दृश्य
बार-बार मेरी आँखों के
सामने आ जाता है

मै क्या करूँ
मन का भी अजब हाल है,
रोना नहीं चाहता फिर भी
आँखों से अश्रु  टपक ही पड़ते है। 


कोलकत्ता
२६ जुलाई, २०११
(यह कविता  "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )

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