Tuesday, November 12, 2013

प्यार की पराकाष्ठा



दोनों एक दूजे  के
सुख-दुःख में शामिल

कई अनमोल सौगाते  
एक दूजे की 
एक दूजे के पास

गात अलग 
लेकिन मन एक 

मेरे मन कि बात 
अनायास निकल पड़ती है  
तुम्हारे मुख से

और तुम्हारे मन कि बात 
निकल आती है
मेरे होठों से

सब कुछ समाहित है
एक दूजे का 
एक दूजे में 

कहीं यही तो नहीं है
प्यार की पराकाष्ठा 
मेरा प्यार - तुम्हारा प्यार।



 [ यह कविता "कुछ अनकही***" में प्रकाशित हो गई है। ]






























No comments:

Post a Comment