Friday, November 29, 2013

बर्फानी हवा



आओ बैठो
खिड़की के पास 
देखो बाहर का नजारा 
  बर्फ के फोहें उड़ रहे है हवा में
   चाँदी का बर्क बिछ गया है धरा पर 

 खोल दो खिड़की 
आने दो बर्फीली हवा को
फिर न जाने कब मौका मिले
नयनों से समेटो इस सौंदर्य को
और सुनो बर्फानी हवा के संगीत को

सामने के लॉन ने
ओढ़ली चाँदी की लिहाफ
सड़क पर आकर सो गयी है हिम
चारो तरफ बिखरे पड़े है हीरक कण
कारों की कतारो पर जा बैठी है बर्फ

चमक रहे हैं 
 गिरजाघरों के कँगूरे 
स्कूल से घर लौटते बच्चे
फेंक रहें है एक दूजे पर गोले
प्रकृति का अदभुत नजारा है यह

पेड़ों कि टहनियों
पर पड़ी बर्फ हवा के
झोंकों से गिर रही है निचे
पंछी कोटरों में दुबक गये हैं
गिलहरियां फुदक रही है बर्फ में

  
आओ बैठो
एक-एक गर्म चाय
के साथ बर्फ के इन फाहों से
ढाई अक्षर की एक कविता बनाएं 
   इस बर्फानी हवा को आज जी भर जिएं । 

  

    [ यह कविता "एक नया सफर" में प्रकाशित हो गई है। ]



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