हे करुणाकर
मै आपकी करुणा
पाकर धन्य हो गया प्रभु !
पाकर धन्य हो गया प्रभु !
मै निर्मल मन से
करता रहा आपसे प्रार्थना
हर समय जपता रहा आपका नाम
करता रहा आपसे प्रार्थना
हर समय जपता रहा आपका नाम
कहता रहा अपने मन की बात आपको प्रभु !
सुबह शाम आपके
चरणो में अश्रु सुमन समर्पित
करता रहा और कातर स्वर से कहता रहा-
सुशीला को स्वस्थ करो प्रभु !
हे अन्तर्यामी
अपरिमित दया आपकी
अपरिमित दया आपकी
जो स्वीकार किया आपने मेरा आग्रह
कर दिया सुशीला को स्वस्थ और निरोग प्रभु !
आज आपने मेरी
अभिलाषा को पूर्ण कर दिया
जीवन में फिर मधुमास ला दिया
सब कुछ आपकी अहेतुकि कृपा प्रभ !
[ यह कविता "एक नया सफर " पुस्तक में प्रकाशित हो गई है। ]
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