नारी ! मृत पति संग
चिता पर जलाई गई,
भरी सभा में निर्वस्त्र की गई
श्राप देकर पाषाण बनाई गई।
तलाक के तीन शब्दों संग
परित्यक्ता बनाई गई,
अग्नि में परीक्षा ली गई
बोटी-बोटी काट तंदूर में जलाई गई।
नग्न देह में उकेरी गई
बाजारों में नीलाम की गई,
डायन कह कर पुकारी गई
जन्म से पहले ही कोख में मार दी गई।
जलती लकड़ी से दागी गई
मिट्टी के तेल से जलाई गई,
बलात्कार की शिकार हुई
जानवरों की भांति नोची -खसोटी गई।
रूढियों के सींखचों में
बहुत अपमान सहा है नारी ने
मगर अब और नहीं सहेगी
अब वह हर जुल्म का प्रतिकार करेगी।
अब वह सबला बन जियेगी
उन्मुक्त दरिया बन बहेगी
उमंगों के सपने बुनेगी
कंवल जैसी खिलेगी
अपने आत्म सम्मान और
स्वाभिमान की कहानी स्वयं लिखेगी।
( यह कविता स्मृति मेघ में प्रकाशित हो गई है। )