Sunday, January 17, 2016

पीहर और ससुराल

     मायके आने पर 
                                                                       बेटी फिर से ढ़ूँढतीं है
अपना बचपन

जिसे वो 
रख कर किसी कोने में
चली गई थी ससुराल

मिलती है 
सखी-सहेलियों से
सहेजती है पुरानी यादों को 

घर में घूम-घूम 
ढूंढती है पुराने सामान को 
खुश होती है अपनी गुड़िया को देख 

लेकिन वह जानती है 
इस घर में अब बदल गई है 
उसकी भूमिका 

अब यह 
उसका घर नहीं 
बल्कि उसका मायका है

उसका घर तो 
 अब सदा-सदा के लिए 
उसका ससुराल हो गया है

जहाँ 
चंद दिनों बाद 
उसे लौट कर चले जाना है।



( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )




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