मायके आने पर
बेटी फिर से ढ़ूँढतीं है
अपना बचपन
जिसे वो
रख कर किसी कोने में
चली गई थी ससुराल
मिलती है
सखी-सहेलियों से
सहेजती है पुरानी यादों को
घर में घूम-घूम
ढूंढती है पुराने सामान को
खुश होती है अपनी गुड़िया को देख
लेकिन वह जानती है
इस घर में अब बदल गई है
उसकी भूमिका
अब यह
उसका घर नहीं
बल्कि उसका मायका है
उसका घर तो
अब सदा-सदा के लिए
अब सदा-सदा के लिए
उसका ससुराल हो गया है
जहाँ
चंद दिनों बाद
उसे लौट कर चले जाना है।
( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )
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