मैं रात भर सेज सजाता रहा
मेरी यादों में बसी रही तुम
अभिसार की सौगंध तुमको
मधुऋतु संग लौट आना तुम।
मैं रात भर फूल बिछाता रहा
मेरी पलकों में बसी रही तुम
मनुहारों की सौगंध तुमको
पुरवा के संग लौट आना तुम।
मैं रात भर दीप जलाता रहा
मेरी सांसों में बसी रही तुम
कांपते दीप की सौगंध तुमको
सावन संग लौट आना तुम।
मैं रात भर राह देखता रहा
मेरे ख्वाबों में बसी रही तुम
पहले प्यार की सौगंध तुमको
चाँदनी संग लौट आना तुम।
( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )
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