Thursday, August 5, 2010

दोस्ती



        माँ की ममता सी होती है दोस्ती                   
            भाई के सहारे सी होती है दोस्ती
बहन के प्यार सी होता है दोस्ती         
                 लाजबाब रिश्ता होती है दोस्ती  

सागर से भी गहरी होती है दोस्ती          .
            जल से  भी शीतल होती है  दोस्ती
    फूलों से भी कोमल होती है दोस्ती               
               हवाओं का संगीत होती है दोस्ती |

     कड़ी धूप में तरुवर होती है दोस्ती             
             मरुभूमि में निर्झर होती है दोस्ती
चाँद की  चाँदनी होती है दोस्ती             
               उजाले कि किरण होती है दोस्ती 

अरमानों  का आइना होती है दोस्ती           
           जीने का एक अंदाज होती है दोस्ती
     उदास चहरे की मुस्कान होती है दोस्ती           
        जीवन का सहारा होती है दोस्ती।



कोलकत्ता
५ अगस्त, २०१०

(यह कविता  "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )

Monday, July 26, 2010

उड़ जाये चिड़िया फुर्र




मुर्गा बांग लगाये उससे
पहले चिड़िया उठ जाती
सूरज के उगने से पहले
आकर मुझे जगा जाती
बैठ मुंडेर के ऊपर ,उड़ जाये चिड़िया फुर्र 

  चीं -चीं कर आँगन में आती   
घर में सबके मन  को भाती,
फुदक फुदक कर उडती जाती
बड़े मजे से गाना गाती
चोंच में लेकर चुग्गा, उड़ जाये चिड़िया फुर्र 

 जंगल - जंगल उड़  उड़ जाती   
मुँह में  तिनका दबा  के लाती,
  लगा- लगा कर एक एक तिनका
अपना  सुन्दर  नीड़ बनाती   
नन्ही नन्ही आँख नचा,उड़ जाये चिड़िया फुर्र 

खेतों -खलिहानों में  जाती
चुन -चुन करके दाना लाती
ची-चीं  करते निज बच्चो के
डाल चोंच में चुग्गा खिलाती
सुना के लोरी बच्चो को,उड़ जाये चिड़िया फुर्र  

दिन भर चिड़िया उडती रहती
थकने  का वो  नाम  न   लेती
हमें  सीख   वो दे   कर जाती
श्रम  करके  चढ़  जावो चोटी
 लक्ष्य आसमां का देकर, उड़ जाये चिड़िया फुर्र |



गीता भवन
२५  जुलाई ,२०१०
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )

Friday, July 23, 2010

मेरी रामायण का राम



मै एक नयी
रामायण का अंकन करूँगा
जो एक आदर्श
रामायण
होगी 

मेरा राम सूर्पनखा का
  नाक काटने के लिए 
  भाई लक्ष्मण को
    नहीं भेजेगा 

मेरा राम सीता के कहने पर
  स्वर्ण मृग को मारने 
  नहीं जायेगा

मेरा राम सुग्रीव से मित्रता
  करने  के लिए कपट से
  बाली का वध
 नहीं करेगा 

मेरा राम अशोक वाटिका से
सीता को लाकर उसकी
उसकी अग्नि परीक्षा
नहीं लेगा

मेरा राम रजक के कहने से
  आसन्न-प्रसवा  सीता को
 वन में छोड़ने नहीं
 भेजेगा 

मेरा राम चारो भाइयो के
 साथ सरयू में जाकर 
  समाधि नहीं
 लेगा

मेरी रामायण का राम एक
आदर्श मानवीय मूल्यों
 का धारक राम
होगा।



कोलकाता
२३ जुलाई,२०१०

Wednesday, July 21, 2010

रैलियाँ

 


कोलकाता और रैलियाँ  
दोनों का चोली-दामन
का साथ रहता है  

कोलकाता है तो रैलियाँ हैं
रैलियाँ है तो समझो यही 
कोलकाता  है

यहां कोई भी कभी भी
रैली निकाल
सकता है 

 रैलियाँ का बड़ा आयोजन
राजनैतिक पार्टियां
ज्यादा करती हैं

इनकी रैलियाँ कोलकाता  का
 चक्का जाम करने में
 सक्षम भी होती हैं

  स्त्रियों के गोद में बच्चे
   पुरुषो के कन्धों पर थैले
     हाथो में झंडे
      पहचान है रैलियों की

महानगर की सडकों पर
अजगर की तरह सरकती है
ये रैलियाँ

इनके पीछे-पीछे
चलती रहती हैं

सायरन बजाती एम्बुलेंस 
जिसमे कोई मरणासन्न
रोगी सोया रहता है

घंटी बजाती दमकल
 जिसे कहीं लगी हुयी आग को
 बुझाने पहुँचना है 

प्रसूता जिसे अविलम्ब
सहायता के लिए
अस्पताल जाना है

लेकिन रैलियों की भीड़
इन सबकी नहीं
सुनती

वो गला फाड़-फाड़
कर नारे लगाती
 रहती है

जिनका अर्थ वो
 स्वयं भी नहीं
जानती हैं

   .इन्कलाब जिंदाबाद
        जिंदाबाद  जिंदाबाद !   



कोलकत्ता
८ सितम्बर,  २०१०

(यह कविता  "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )

Tuesday, July 20, 2010

अन्तर


तुलसीदास जी
अपनी पत्नी से
बहुत प्रेम करते थे

एक दिन पत्नी के
व्यंग बाणों से
आहत हो कर
घर छोड़ जंगल में
चले गये थे 

निर्वासित हो कर ही 
उन्होंने रामचरित मानस
जैसा काब्य लिखने का
कष्ट उठाया था 

मै भी
अपनी पत्नी से
बहुत प्रेम करता हूँ

लेकिन पत्नी के
व्यंग बाणों से कभी
विचलित नहीं होता हूँ

वो चाहे जितना भी डांटे
मै अपने कान पर जूं तक
नहीं रेंगने देता हूँ

आराम से घर पर बैठ  
चाय की चुस्कियों के साथ
कविता रुपी काब्य
लिखता रहता हूँ।


गीता  भवन  
२० जुलाई , २०१०                                                                                                                                                                                                                                                                                                                [यह कविता "कुमकुम के छींटे "पुस्तक में प्रकाशित हो गई है ]                                                                                                                              

Saturday, July 17, 2010

भक्तगण



गर्मियों की शाम
स्वर्गाश्रम (ऋषिकेश)
गंगा का तट
पानी में नहाते
भक्तगण 

ठंडी-ठंडी हँवाए
शांत गंगा जल
घाटों पर ध्यान लगाते
भक्तगण

गीता भवन का घाट
श्री गौरी शंकर जी के
सानिध्य में 
शिव महिमा स्त्रोत्र का
 पाठ करते
भक्तगण। 

परमार्थ निकेतन का घाट
मुनि श्री चिन्मया नन्द जी के
सानिध्य में
गंगा आरती करते
भक्तगण 

वानप्रस्थ आश्रम
श्री मुरारी बापू के
सानिध्य में
भागवत कथा का
रसपान करते
भक्तगण 

श्री वेद निकेतन धाम
  विश्व गुरूजी के
सानिध्य में
हठयोग का 
 प्रशिक्षण लेते   
भक्तगण 

आध्यात्मिक भक्ति -भाव
से ओतप्रोत 
गंगा में दीपक
अर्पित करते 
कितने अच्छे लगते हैं
भक्तगण। 



गीता भवन
१६ जुलाई, 2010

(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )

Tuesday, July 13, 2010

भेड़ चाल


भेड़ गर्मिंयो में  
लू के थपेड़े खा कर
जलती देह पर ऊन उगाती है

सर्दियों में 
ठंडी हवाओं के थपेड़े भी 
सहती रहती है

लेकिन अपनी
ऊन दूसरो को कम्बल
 बनाने के लिए दे देती है 

इंसान आज तक
भेड़ चाल के नाम पर
कटाक्ष ही करता आया है

क्या उसने कभी
भेड़ के इस त्याग को भी
समझ ने की चेष्टा की है ?
    
गीता भवन
१२ जुलाई,२०१०


(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )