Monday, April 17, 2017

गाँव का जीवन

                                                                      देश के महानगरों में 
रह कर भी मुझे 
अपने गाँव की 
याद आती है। 

आलीशान मकान में 
रह कर भी मुझे 
गाँव वाले घर की 
याद आती है। 

हवाई जहाजों में
सफर करके भी मुझे 
गांव वाली बैलगाड़ी की 
  याद आती है।  

पाँच सितारा होटलों में 
ठहर कर भी मुझे 
खेत वाले झोंपड़े की
याद आती है। 

स्वादिष्ट खाना 
खाकर भी मुझे 
माँ के हाथ की रोटी की 
याद आती है। 


                                                                         ऐशो आराम की  
                                                                   जिंदगी जी कर भी मुझे     

गाँव के जीवन की 
याद आती है।



( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )

Saturday, April 8, 2017

पचास ऋतु चक्रों को समर्पित

पचास ऋतु चक्रों को समर्पित
जीवन के संग-सफर में
आज हर एक मोड़ पर
मुझे तुम्हारी सबसे ज्यादा
जरुरत है।

लेकिन मैं यह भी जानता हूँ
कि तुम अब इस जीवन में
मुझे कभी नहीं मिलोगी।

मैं चाह कर भी
तुम्हारी कोई झलक
तुम्हारी कोई आवाज
तुम्हारी कोई खबर
नहीं ले पाऊंगा।

फिर भी मैं तुम्हें
हर मौसम
हर महीने
हर सप्ताह
हर दिन
हर घड़ी
हर पल
हर क्षण
अपने जीवन सफर में जीवूंगा।

Friday, April 7, 2017

मेरी आँखों में सावन-भादो उत्तर गया

मेरे जीवन में कोई उल्लास नहीं रहा
           मेरे जीवन में कोई मधुमास नहीं रहा
                   मेरे जीवन का स्वर्णिम सूरज डूब गया
                          मेरी आँखों में सावन-भादो उतर गया।


मेरे जीवन में खुशियां की सौगात नहीं रही
         मेरे जीवन में पायल की झनकार नहीं रही
                   मेरे जीवन का मंगल गान बिसर गया
                         मेरी आँखों में सावन-भादो उतर गया।


मेरी पलकों में सुनहरा स्वपन नहीं रहा
        मेरे होठों पर प्यार भरा गीत नहीं रहा
                मेरा हमसफर जीवन राह में बिछुड़ गया
                        मेरी आँखों में सावन-भादो उतर गया।


मेरे जीवन में अधरों का हास नहीं रहा
        मेरे जीवन में गीतों का सार नहीं रहा                                     
                 मेरे जीवन से सुख का कारवाँ गुजर गया
                          मेरी आँखों में सावन-भादो उतर गया।                       



  [ यह कविता 'कुछ अनकही ***"में प्रकाशित हो गई है ]

















Tuesday, March 14, 2017

याद आता मुझको मेरा गाँव

बहुत याद आता है,  मुझको मेरा गाँव
कुँवा वाले पीपल की, ठंडी-ठंडी छाँव।

सोने जैसी माटी, वहाँ हरे-भरे खेत
बहुत याद आती है, धोरा वाली रेत।
                     खेत में लगे हुए हैं, खेजड़ी के पेड़
                     हरेहरे पत्तों को, चरती बकरी भेड़।

गायों का घर आना, गोधूलि बेला
रात में खेलना, लुका छिपी खेला।
                  खुला - खुला आसमां, तारों भरी रात
                  चाँद की चांदनी में, करते मीठी बात।

सावन में झूला, फागुन में होली
याद आती है,  जगमग दिवाली।
                          गणगौर मेला, बैलों का दौड़ना
                          आपस में सबका, प्रेम से रहना।

कुऐ का मीठा, अमृत जैसा पानी
अलाव पर बैठ, सुनते थे कहानी
                        शहर की जिंदगी, मुझे नहीं भाती
                         गाँव की यादें, मुझे बेहद सताती।

बहुत याद आता है,  मुझको मेरा गाँव
कुवाँ वाले पीपल की, ठंडी-ठंडी छाँव।


( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )




Monday, March 6, 2017

तुम्हारा इन्तजार

आज भी दर्पण पर
 लगी बिंदी करती है
तुम्हारा इन्तजार
जहां बैठती तुम सजने-संवरने को 

आज भी पार्क की
[पगडण्डी करती है
तुम्हारा इन्तजार 
जहाँ जाती तुम घूमने को

आज भी छत पर बैठे
पक्षी करते हैं
तुम्हारा इन्तजार 
दाना-पानी चुगने को 

आज भी शाम ढले
तुलसी का बिरवा करता है
तुम्हारा इन्तजार
दीया-बाती जलाने को

आज भी दरवाजे पर 
रंभाती है धोळी गाय
 तुम्हारे हाथों से 
 गुड़-रोटी खाने को




( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। ) 




Monday, January 23, 2017

जीवन बे-राग री

झाँझर नैया
डाँड़ें टूटना
राहे सफर
अकेले चलना
साथ छूटा, राह भुला, मुश्किल हुई  मंजिल री।
मधुऋतु बीती, पतझड़ आया, जीवन बेराग री।

तनहा रहना
जुदाई सहना
घुट-घुट जी
टूट-टूट बिखरना 
उदासी छाई, आँखे भर आई, मिटा अनुराग री।
मधुऋतु बीती, पतझड़ आया,  जीवन बेराग री।

निष्प्राण जीवन
गमों को सहना
विरह के आँसूं
अरमां बिखरना
साज टूटा, स्वर रूठा, अब गीत बना बेराग री।
मधुऋतु बीती, पतझड़ आया, जीवन बेराग री।

चिर वियोग
जीवन में सहना
व्याकुल ह्रदय
यादों में रहना
ख़्वाब आया, दीदार हुवा, सपना प्यारा टुटा री।
मधुऋतु बीती, पतझड़ आया, जीवन बेराग री।


( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )

Wednesday, January 18, 2017

कथनी और करनी

मैं पढ़ता रहा
समाजवाद, मार्क्सवाद
और प्रजातंत्रवाद पर लिखी पुस्तकें
और तुम खिलाती रही भिखारियों को,
गायों को और कुतो को रोज रोटी।

मैं सुनता रहा पर्यावरण पर
लंबे-चौड़े भाषण और
तुम पिलाती रही तुलसी को
बड़ को और पीपल को रोज पानी।

मैं चर्चाएं करता रहा
टालस्टाय, रस्किन और
गाँधी के श्रम की महता पर
और तुम करती रही सुबह से
शाम तक घर का सारा काम।

मैं सेमिनारों में सुनाता रहा
पशु-पक्षियों के अधिकारों के बारे में
और तुम रोज सवेरे छत पर
देती रही कबूतरों को, चिड़ियों को
और मोरो को दाना-पानी।

मैं सुनता रहा
उपदेशो और भाषणों को
और तुम रोज पढ़ाती रही
निर्धन बच्चों को
देती रही उन्हें खाना
कपड़े और दवाइयाँ।

तुमने मुझे दिखा दिया
दुनिया कथनी से नहीं
करनी से बदलती है।

काम कर्मठ हाथ करते हैं
थोथले विचारों से
दुनिया नहीं बदलती है।