Wednesday, May 8, 2013

पचास वर्षो का सफ़र



मेरी चाहत थी
इसी जीवन में
सब कुछ पाने की

नहीं चाहत थी
अगले जन्म में
फिर कुछ पाने की

तुम मुझे मिली
मानो गुलशन में
बहार आई

मेरी राहों के कांटे
पलकों से उठाये
तुमने

मुझे अम्बर तक
उठने का अहसास
दिया तुमने

अपनी हँसी के संग
मुझे मुस्कराहट
दी तुमने

जीवन के पचास
बसंत साथ बिताये
तुमने

चंद शब्दो में कहूँ तो
जीवन में सब कुछ
दिया तुमने।



 [ यह कविता "कुछ अनकही***" में प्रकाशित हो गई है। ]



















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