Thursday, July 31, 2014

अश्रुमेघ बरसते हैं

सूख चुकी अमृत की बूंदें, अब गरल को पीना है
एक तुम्हारे जाने से, सब कुछ पाकर भी रीता हैं।
               
                                            अब न कोई ख़ुशी बची, न कोई अब ख्वाइस है
                                             न सुखों को आना है अब, न दुःखों को जाना है।

अब तो ग़मों की छाया में, जिंदगी को जीना है
बची हुई साँसों को अब, यादों के संग रहना हैं।
                               
कौन पूछने आएगा, मेरे जीवन के सुख-दुःख को
         पास बैठ कर कौन सुनेगा, मेरे मन की बातों को।       
                 
शब्द नहीं निकलते मुख से, आँखों से ही झरते है
जब से तुम बिछड़ी हो मुझसे, अश्रुमेघ बरसते हैं।


[ यह कविता "कुछ अनकही ***" पुस्तक में प्रकाशित हो गई है ]

Monday, July 28, 2014

६ जुलाई २०१४ का वह मनहूस दिन




६ जुलाई २०१४  का
वह मनहूस दिन जब
सुबह-सुबह सूटकेस में
कपडे रखते हुए
तुमने मुझे कहा था

अपने सहपाठी के
बेटे की शादी में
सुजानगढ़ जा कर आना  

दरवाजे तक आकर
तुमने मुझे और श्याम को
मुस्करा कर विदा किया था 

किस को पता था
कि आज की यह विदाई
हमारी आखिरी विदाई होगी

मै रास्ते में तुमसे फोन से
बातें करता रहा
तुम भी सभी कुछ
बताती रही 

शाम सवा चार बजे 
मैंने जब तुमसे  पूछा कि 
चाय पी या नहीं
उस समय मुझे
तुम्हारी आवाज में कुछ
भारीपन लगा

मेरे पूछने पर
तुमने कहा कि नहीं 
मैं ठीक हूँ

अचानक साढ़े चार बजे 
मनीष का फोन आया
कि तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है
वो तुम्हें हॉस्पिटल ले जा रहे हैं 

मै घबरा गया
मैंने श्याम से कहा -
श्याम गाड़ी को वापिस मोड़ो 
और फरीदाबाद वापिस चलो

पांच मिनट के बाद ही
मनीष घबराई आवाज में बोला-
हम हॉस्पिटल के रास्ते में है
लेकिन लगता है बाई नहीं रही

हॉस्पिटल में
डॉक्टरों ने बताया कि
तुम अपनी ईह-लीला
समाप्त कर चुकी हो

फरीदाबाद पहुँचने में
हमें सात घंटें लग गए
आँसूं थमने का नाम
नहीं ले रहे थे

जीवन में दुखों का
पहाड़ टूट पड़ा था
एक ही झटके में
जीवन के सारे सपने
चकनाचूर हो गए थे।


फरीदाबाद 
२८ जुलाई, २०१४


दादी वापिस आओ ना

दादी तुम क्यों रूठ गई
मुझे छोड़ क्यों चली गई
आकर मुझे खिलाओ ना
गोद में मुझे झुलाओ ना
दादी वापिस आओ ना।

सूरज कैसे उगता है
कैसे चाँद चमकता है
पारियां कहाँ से आती है
आकर मुझे बताओ ना
दादी वापिस आओ ना।

चिड़िया कैसे गाती है
कैसे गाय रम्भाती है
बिल्ली किससे डरती है
आकर मुझे सिखाओ ना
दादी वापिस आओ ना।

प्यारी-प्यारी बाते करके
खाना मुझे खिलाओ ना
मीठी मीठी लोरी गा कर
मुझको नींद सुलाओ ना
दादी वापिस आओ ना।

किसको चाय बना कर दूंगी
कौन कहेगा वाह ! वाह ! वाह
कौन कहेगा गुड़िया रानी
अब तुम ही बतलाओ ना
दादी वापिस आओ ना।



फरीदाबाद
२८ जुलाई, २०१४

(आयशा के दादीजी ३०जनवरी,२०१४ को अमेरिका से आए।  १४ महीने की आयशा को पहली बार देखा।
६ जुलाई,२०१४ को उनका परलोक गमन हो गया। केवल ५ महीने ६ दिन आयशा के साथ रहे। १९ महीने
की आयशा को कैसे याद रहेगा कि उसकी दादी उसे कितना अधिक प्यार करती थी। )


[ यह कविता "कुछ अनकही ***" पुस्तक में प्रकाशित हो गई है ]











Sunday, July 27, 2014

अप्रत्यासित मिलन

तुम से बिछुड़े हुए
आज पन्द्रह दिन हो गए,
आये हुए बन्धु -बांधव भी
घरों को लौट गए

तुम्हारी मुँह बोली बहन
फ्रांसिस स्टुवर्ड अभी यहीं है
वो थोड़े दिन सब के साथ
रहना चाहती है

आज शाम उसने मुझे
बाहर घूमने के लिए कहा,
मेरा मन नहीं था लेकिन उसके
आग्रह को टाल भी नहीं सका

हम उसी पार्क में चले गए
जहाँ तुम रोज घुमा करती थी
उस बैंच पर भी बैठे
जहां तुम बैठा करती थी

घूमते-घूमते अचानक
हमारे सामने एक
विद्युतकणों का पुंज
साकार हो गया,
मेरे सारे शरीर में
एक ठंडी लहर सी दौड़ गयी
मैं पसीने से तर-बतर हो गया

फ्रांसिस ने मुझसे कहा--
आत्माऐं इस माध्यम से
अपनी उपस्थिति दर्ज कराती है
आप भाग्यशाली है
आज पन्द्रहवें दिन वह आपसे
विदा लेने आई है

आइये हम दोनों
उनकी मंगल कामना के लिए
प्रभु से प्रार्थना करें
आज ख़ुशी मन से
उन्हें हम विदा करें।




फरीदाबाद
२० जुलाई, २०१४



फ्रांसिस स्टुवर्ड पिट्सबर्ग (अमेरिका) में रहती है। वह मेरी स्वर्गीय धर्मपत्नी सुशीला कांकाणी की मुँह बोली बहन है। धर्म से वो क्रिश्चियन है, लेकिन बौद्ध धर्म में आस्था रखती है।  जहां आत्मा और परमात्मा के रिश्ते को बहुत गहराई से समझा जाता है। उसकी बेटी नैगली स्टुवर्ड अमेरिका में बौद्ध धर्म पर रिसर्च कर रही है। उसने मुझे बताया कि सुखी आत्माएँ धरती पर अपने प्रियजनों से मिलने आती है और समय-समय पर जीवात्मा जगत से
सुक्ष्म तरंगों के माध्य्म से सन्देश भी भेजती रहती है।  


                                                      [ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]


Saturday, July 26, 2014

आभास हो गया था मन को

आज मेरे साथ
जो घटनाएँ घट रही थी
उससे मेरा मन शशंकित था

सपने में भी आज मुझे
कुछ इसी तरह का आभास
पहले से ही हो गया था

कृष्ण की मूर्ति को 
पूजा में रखते समय
हाथ से उलटा रखा जाना

पूजा के बर्तनों को
मंदिर में रखते हुए
हाथ से छूट कर गिर जाना

आज कुछ अप्रत्याशित
घटित होने वाला है
यह उसी का पूर्वाभाष था

जीवात्मा जगत से
सुक्ष्म तरंगों के माध्य्म से
कोई सन्देश भेज रहा था

ब्रह्माण्ड में
कोई शक्ति विध्यमान है
जो पूर्वाभास करा देती है

कोई पृष्ठभूमि
तैयार हो रही है
यह संकेतो में समझा देती है

६ जुलाई २०१४ का
वह मनहुस दिन
मेरे जीवन में कहर बन कर आया

मेरी जीवन संगिनी 
को सदा-सदा के लिए
मुझ से छीन कर ले गया।


 [ यह कविता "कुछ अनकहीं ***" में छप गई है।]




Wednesday, July 23, 2014

आज तुम नहीं थी

सुबह का सूरज
आज भी चमक रहा था 
चाँद आज भी 
चांदनी संग आया था
तारे आज भी 
झिलमिला रहे थे
लेकिन आज तुम नहीं थी

बगीचे में फूल
आज भी खिले थे 
तितलियाँ आज भी 
फूलों पर मंडरा रही थी
भँवरें आज भी 
गुनगुना रहे थे 
लेकिन आज तुम नहीं थी

बच्चे आज भी
स्कूल जा रहे थे
दरवाजे पर काली गाय
आज भी रम्भा रही थी
कबूतर आज भी
छत पर दाना चुग रहे थे 
लेकिन आज तुम नहीं थी

पूजा की घंटियों के साथ
आज भी सवेरा हुआ था 
आरती आज भी 
गाई गई थी 
तुलसी चौरे पर आज भी
दीपक जला था
लेकिन आज तुम नहीं थी

काव्यात्मक दग्धता
आज भी मचल रही थी 
हाथ लिखने को 
आज भी आतुर थे 
लेकिन मैं लिख नहीं पाया
कागज़ कलम तो थी
लेकिन आज तुम नहीं थी।


                                                 [ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]

फरीदाबाद 
दिनांक : २३ जुलाई २०१४ 







Friday, July 18, 2014

शोकसंदेश

श्रीं गोबिन्दाय नमः

श्रीमति सुशीला कांकाणी  का जन्म १८ अक्टुम्बर 1951  को सुजानगढ़ , राजस्थान में हुवा था।  आपके पिताजी का नाम स्व. सूरजमल जी चांडक और माता का नाम स्व. श्रीमति केशर देवी चांडक  था।  आपकी बड़ी बहन का नाम स्व. भंवरी देवी तापरिया था। बहुत छोटी उम्र में ही, जब आप क्लास 8th  में पढ़ रही थी आपका विवाह भागीरथ  कांकाणी  सुजानगढ़ निवासी के साथ 20 मई , 1954  में हो गया।

आपके चार पुत्र हुए - श्री श्याम, राज , नील और मनीष।  चारो की शादियां हो चुकी है. बहुएं  हैं श्रीमति शशिकला , रश्मि, पूनम और राजश्री।

आपके चार पौत्र - अभिषेक , राहुल , गौरव, कृष्णा और तीन पौत्रियाँ - पूजा, राधिका, आइशा  हैं।


आपके वैवाहिक जीवन का अधिकांश समय कोलकाता और फरीदाबाद में व्येतित हुवा।  आपके वैयक्तिक गुणों के कारण जो भी आपके संपर्क में आया वो हमेशा के लिए आपका बन कर रह गया।  आपके  दाम्पत्य जीवन में समर्पण के भाव की सभी मुक्त कंठ से प्रसंशा करते हैं।


आप सपरिवार धर्म कर्म पालन तथा मर्यादानुसार आचरण करने कराने के लिए  तथा अपने कार्य क्षेत्र में पारंगत , पारिवारिक जीवन में अत्यंत प्रिय और सभी की आदरणीय रही। परिवार में कर्मठता आपकी पहचान रही।  आपके सुदृढ़ व्येक्तित्व का ही प्रभाव था की जो भी आपसे एक बार मिल लेता वो हमेशा के लिए आपका बन कर रह जाता।


आपको यात्राये करने का बड़ा शौक था। देश के सभी तीर्थ स्थलों और पर्यटक स्थलों का आप कई बार भ्रमण  कर चुकी थी।  गीता  भवन - ऋषिकेश में तो आप पुरे परिवार के साथ प्रति वर्ष  महीने भर ठहरती।  विदेश  भ्रमण का भी आपको बहुत शौक था. आपने  इंग्लैण्ड, फ़्रांस , आस्ट्रेलिया , स्विजरलैंड, अमेरिका, सिंगापुर , हांगकांग, थाईलैंड आदि कई देशो की यात्रायें की।


आप एक उदारमना एवम  धार्मिक प्रवृति  की महिला थी।  नित्य गीता रामायण का पाठ  करना और माला जप करना आदि आपके दैनिक कार्यक्रम  में  सम्मिलित था।  दान पुण्  के कार्य में आप हमेशा आगे रही। नियमित रूप  से घूमना, प्रयाणाम् करना, ब्यायाम करना आपने  कभी नहीं छोड़ा।


अपनी मधुर मुस्कान, चहरे पर एक ओजस्वी भाव,  सहजता और सरलता के चलते न केवल समाज में बल्कि विदेशो में  भी आपने  अपनी  सुहृदयता का परिचय दिया।  आज इस दुःख की घड़ी में भी आपकी मुंह बोली बहन फ्रांसिस स्टीवर्ट  अमेरिका से आकर आपके परिवार के साथ खड़ी है।


आपके कोई पुत्री नहीं थी , लेकिन आपने अपनी बहुओ को अपनी पुत्री का प्यार दिया। उन्हें कभी अहसास नहीं होने दिया की वो अपने मायके से दूर है।  बेटो के ससुराल वाले भी आपको समधिन नहीं अपितु अपने परिवार का सदस्य समझ कर ही आदर देते थे।  बेटो की सास तो आपको अपनी बहन समझ कर प्यार देती थी।


2012  सितम्बर में आपके फेफड़ों का प्रत्यारोपण अमेरिका में सफलता पूर्वक किया गया।  30 जनवरी 2014 को आप पूर्ण स्वस्थ हो कर स्वदेश लौट आई।  20  मई 2014 को आपने अपने वैवाहिक जीवन की स्वर्णिम जयन्ती बहुत धूमधाम से कोलकाता  में मनाई। उसी दिन  श्री  भागीरथ जी ने अपनी कविताओ की पुस्तक एक नया सफर का विमोचन किया और पुस्तक आपको समर्पित की।   जिसमे लगभग 20 कविताएं उन्होंने आपको सम्बोधित करके लिखी।


स्वदेश लौटे अभी केवल पांच -सवा पांच महीने ही बीते थे।  कोलकाता और फरीदाबाद परिवारो में मनायी गयी स्वर्णिम जयन्ती  की बाते फीकी भी नहीं पडी थी कि  पुरे परिवार पर 6 जुलाई २०१४ शाम ५ बजे भीषण ब्रजपात हो गया।ह्रदय गति के  रुक जाने से श्रीमति सुशीला जी का अचानक स्वर्गवास हो गया।


जिसने भी सुना वह स्तब्ध रह गया, किसी को भी विश्वाश नहीं हो रहा था कि ऐसा भी हो सकता है।  लेकिन होनी को कौन टाल सका  है ? ईश्वर की यही मर्जी थी।  अपना भरा पूरा, सम्पन परिवार छोड़ सुशीला जी प्रभू  में विलीन हो गयी।


आपका  निधन न केवल कांकाणी परिवार की व्येक्तिगत  क्षति है अपितु पुरे कोलकाता और  फरीदाबाद के माहेश्वरी समाज  की क्षति  है जिसने अपने एक आत्मीय स्वजन को खो दिया।


ईश्वर से हम सभी की यही पार्थना है कि प्रभू  दिवंगत आत्मा को सदगति प्रदान करे एंवम  शोक संतप्त परिवार को मर्मान्तक कष्ट  सहन करने की क्षमता  प्रदान करे।



राजस्थान भवन, फरीदाबाद में १७ जुलाई, २०१४ शाम ४. ४५ पर कवि दिनेश रघुवंशी द्वारा पढ़ा गया शोकसंदेश
जिन संस्थाओं से शोकसंदेश प्राप्त हुए उनके नाम हैं ---

१.











Wednesday, July 16, 2014

कहाँ हो तुम ?

आज तुम्हे गए
दस दिन हो गए लेकिन
लगता है जैसे कल की बात हो

पंडित ने आज
दस-कातर करवा दिए
कल नारायण बलि भी करा देगा

भेजेगा छींटें
घर का शौक मिटाने
क्या वो छींटें मेरे मन के
शौक को भी मिटा पायेंगे

बारहवें के बाद तो
बंधु-बांधव भी चले जायेंगे
संग रहेगी केवल तुम्हारी यादें

तुम्हारी यादें
 जो अब जीवन भर
आँखों से अश्रु बन बहेगी 

तुम जो मुझे
कभी उदास देखना भी
पसंद नहीं करती थी

आज मेरी आँखों से
अविरल अश्रु धारा बह रही है 
कहाँ हो तुम ?



  [ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]



फरीदाबाद
१५ जुलाई २०१४











Tuesday, July 15, 2014

टपक रहा है मेरा दर्द

तुम्हारे जाने के बाद
काल बैसाखी की
पहली बारिश आज आई

पिछली बार तो तुम
मेरा हाथ पकड़ कर 
ले गई थी भीगने
आँगन में

लेकिन आज तो 
तुम नहीं हो
अब कौन लेकर जाएगा    
हाथ पकड़ भीगने
आँगन में

बारिश में तन्हा 
नहीं भीगा जाता 
प्यार में जिसके संग 
तन-मन भीगा होता है 
बारिश में उसी संग 
भीगा जाता है 

आज मुझे जीवन में 
पहली बार बारिश 
अच्छी नहीं लगी

मेरी तन्हाई का दर्द
बरसात की बूंदों में बसा था
टपक रहा था पिछवाड़े में 
टप--टप--टप--टप।

फरीदाबाद
१५ जुलाई, २०१४