आज तुम्हे गए
दस दिन हो गए लेकिन
लगता है जैसे कल की बात हो
पंडित ने आज
दस-कातर करवा दिए
कल नारायण बलि भी करा देगा
भेजेगा छींटें
घर का शौक मिटाने
क्या वो छींटें मेरे मन के
शौक को भी मिटा पायेंगे
बारहवें के बाद तो
बंधु-बांधव भी चले जायेंगे
संग रहेगी केवल तुम्हारी यादें
तुम्हारी यादें
जो अब जीवन भर
जो अब जीवन भर
आँखों से अश्रु बन बहेगी
तुम जो मुझे
कभी उदास देखना भी
पसंद नहीं करती थी
कभी उदास देखना भी
पसंद नहीं करती थी
आज मेरी आँखों से
अविरल अश्रु धारा बह रही है
अविरल अश्रु धारा बह रही है
कहाँ हो तुम ?
[ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]
१५ जुलाई २०१४
No comments:
Post a Comment