Friday, July 18, 2014

शोकसंदेश

श्रीं गोबिन्दाय नमः

श्रीमति सुशीला कांकाणी  का जन्म १८ अक्टुम्बर 1951  को सुजानगढ़ , राजस्थान में हुवा था।  आपके पिताजी का नाम स्व. सूरजमल जी चांडक और माता का नाम स्व. श्रीमति केशर देवी चांडक  था।  आपकी बड़ी बहन का नाम स्व. भंवरी देवी तापरिया था। बहुत छोटी उम्र में ही, जब आप क्लास 8th  में पढ़ रही थी आपका विवाह भागीरथ  कांकाणी  सुजानगढ़ निवासी के साथ 20 मई , 1954  में हो गया।

आपके चार पुत्र हुए - श्री श्याम, राज , नील और मनीष।  चारो की शादियां हो चुकी है. बहुएं  हैं श्रीमति शशिकला , रश्मि, पूनम और राजश्री।

आपके चार पौत्र - अभिषेक , राहुल , गौरव, कृष्णा और तीन पौत्रियाँ - पूजा, राधिका, आइशा  हैं।


आपके वैवाहिक जीवन का अधिकांश समय कोलकाता और फरीदाबाद में व्येतित हुवा।  आपके वैयक्तिक गुणों के कारण जो भी आपके संपर्क में आया वो हमेशा के लिए आपका बन कर रह गया।  आपके  दाम्पत्य जीवन में समर्पण के भाव की सभी मुक्त कंठ से प्रसंशा करते हैं।


आप सपरिवार धर्म कर्म पालन तथा मर्यादानुसार आचरण करने कराने के लिए  तथा अपने कार्य क्षेत्र में पारंगत , पारिवारिक जीवन में अत्यंत प्रिय और सभी की आदरणीय रही। परिवार में कर्मठता आपकी पहचान रही।  आपके सुदृढ़ व्येक्तित्व का ही प्रभाव था की जो भी आपसे एक बार मिल लेता वो हमेशा के लिए आपका बन कर रह जाता।


आपको यात्राये करने का बड़ा शौक था। देश के सभी तीर्थ स्थलों और पर्यटक स्थलों का आप कई बार भ्रमण  कर चुकी थी।  गीता  भवन - ऋषिकेश में तो आप पुरे परिवार के साथ प्रति वर्ष  महीने भर ठहरती।  विदेश  भ्रमण का भी आपको बहुत शौक था. आपने  इंग्लैण्ड, फ़्रांस , आस्ट्रेलिया , स्विजरलैंड, अमेरिका, सिंगापुर , हांगकांग, थाईलैंड आदि कई देशो की यात्रायें की।


आप एक उदारमना एवम  धार्मिक प्रवृति  की महिला थी।  नित्य गीता रामायण का पाठ  करना और माला जप करना आदि आपके दैनिक कार्यक्रम  में  सम्मिलित था।  दान पुण्  के कार्य में आप हमेशा आगे रही। नियमित रूप  से घूमना, प्रयाणाम् करना, ब्यायाम करना आपने  कभी नहीं छोड़ा।


अपनी मधुर मुस्कान, चहरे पर एक ओजस्वी भाव,  सहजता और सरलता के चलते न केवल समाज में बल्कि विदेशो में  भी आपने  अपनी  सुहृदयता का परिचय दिया।  आज इस दुःख की घड़ी में भी आपकी मुंह बोली बहन फ्रांसिस स्टीवर्ट  अमेरिका से आकर आपके परिवार के साथ खड़ी है।


आपके कोई पुत्री नहीं थी , लेकिन आपने अपनी बहुओ को अपनी पुत्री का प्यार दिया। उन्हें कभी अहसास नहीं होने दिया की वो अपने मायके से दूर है।  बेटो के ससुराल वाले भी आपको समधिन नहीं अपितु अपने परिवार का सदस्य समझ कर ही आदर देते थे।  बेटो की सास तो आपको अपनी बहन समझ कर प्यार देती थी।


2012  सितम्बर में आपके फेफड़ों का प्रत्यारोपण अमेरिका में सफलता पूर्वक किया गया।  30 जनवरी 2014 को आप पूर्ण स्वस्थ हो कर स्वदेश लौट आई।  20  मई 2014 को आपने अपने वैवाहिक जीवन की स्वर्णिम जयन्ती बहुत धूमधाम से कोलकाता  में मनाई। उसी दिन  श्री  भागीरथ जी ने अपनी कविताओ की पुस्तक एक नया सफर का विमोचन किया और पुस्तक आपको समर्पित की।   जिसमे लगभग 20 कविताएं उन्होंने आपको सम्बोधित करके लिखी।


स्वदेश लौटे अभी केवल पांच -सवा पांच महीने ही बीते थे।  कोलकाता और फरीदाबाद परिवारो में मनायी गयी स्वर्णिम जयन्ती  की बाते फीकी भी नहीं पडी थी कि  पुरे परिवार पर 6 जुलाई २०१४ शाम ५ बजे भीषण ब्रजपात हो गया।ह्रदय गति के  रुक जाने से श्रीमति सुशीला जी का अचानक स्वर्गवास हो गया।


जिसने भी सुना वह स्तब्ध रह गया, किसी को भी विश्वाश नहीं हो रहा था कि ऐसा भी हो सकता है।  लेकिन होनी को कौन टाल सका  है ? ईश्वर की यही मर्जी थी।  अपना भरा पूरा, सम्पन परिवार छोड़ सुशीला जी प्रभू  में विलीन हो गयी।


आपका  निधन न केवल कांकाणी परिवार की व्येक्तिगत  क्षति है अपितु पुरे कोलकाता और  फरीदाबाद के माहेश्वरी समाज  की क्षति  है जिसने अपने एक आत्मीय स्वजन को खो दिया।


ईश्वर से हम सभी की यही पार्थना है कि प्रभू  दिवंगत आत्मा को सदगति प्रदान करे एंवम  शोक संतप्त परिवार को मर्मान्तक कष्ट  सहन करने की क्षमता  प्रदान करे।



राजस्थान भवन, फरीदाबाद में १७ जुलाई, २०१४ शाम ४. ४५ पर कवि दिनेश रघुवंशी द्वारा पढ़ा गया शोकसंदेश
जिन संस्थाओं से शोकसंदेश प्राप्त हुए उनके नाम हैं ---

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