६ जुलाई २०१४ का
वह मनहूस दिन जब
सुबह-सुबह सूटकेस में
कपडे रखते हुए
तुमने मुझे कहा था
अपने सहपाठी के
बेटे की शादी में
सुजानगढ़ जा कर आना
सुबह-सुबह सूटकेस में
कपडे रखते हुए
तुमने मुझे कहा था
अपने सहपाठी के
बेटे की शादी में
सुजानगढ़ जा कर आना
दरवाजे तक आकर
तुमने मुझे और श्याम को
मुस्करा कर विदा किया था
किस को पता था
कि आज की यह विदाई
हमारी आखिरी विदाई होगी
कि आज की यह विदाई
हमारी आखिरी विदाई होगी
मै रास्ते में तुमसे फोन से
बातें करता रहा
तुम भी सभी कुछ
बताती रही
शाम सवा चार बजे
मैंने जब तुमसे पूछा कि
चाय पी या नहीं
उस समय मुझे
तुम्हारी आवाज में कुछ
भारीपन लगा
मेरे पूछने पर
तुमने कहा कि नहीं
उस समय मुझे
तुम्हारी आवाज में कुछ
भारीपन लगा
मेरे पूछने पर
तुमने कहा कि नहीं
मैं ठीक हूँ
अचानक साढ़े चार बजे
मनीष का फोन आया
कि तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है
वो तुम्हें हॉस्पिटल ले जा रहे हैं
कि तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है
वो तुम्हें हॉस्पिटल ले जा रहे हैं
मै घबरा गया
मैंने श्याम से कहा -
श्याम गाड़ी को वापिस मोड़ो
और फरीदाबाद वापिस चलो
पांच मिनट के बाद ही
मनीष घबराई आवाज में बोला-
हम हॉस्पिटल के रास्ते में है
लेकिन लगता है बाई नहीं रही
हॉस्पिटल में
डॉक्टरों ने बताया कि
तुम अपनी ईह-लीला
समाप्त कर चुकी हो
फरीदाबाद पहुँचने में
हमें सात घंटें लग गए
मनीष घबराई आवाज में बोला-
हम हॉस्पिटल के रास्ते में है
लेकिन लगता है बाई नहीं रही
हॉस्पिटल में
डॉक्टरों ने बताया कि
तुम अपनी ईह-लीला
समाप्त कर चुकी हो
फरीदाबाद पहुँचने में
हमें सात घंटें लग गए
आँसूं थमने का नाम
नहीं ले रहे थे
जीवन में दुखों का
पहाड़ टूट पड़ा था
एक ही झटके में
जीवन के सारे सपने
चकनाचूर हो गए थे।
नहीं ले रहे थे
जीवन में दुखों का
पहाड़ टूट पड़ा था
एक ही झटके में
जीवन के सारे सपने
चकनाचूर हो गए थे।
फरीदाबाद
२८ जुलाई, २०१४
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