सूख चुकी अमृत की बूंदें, अब गरल को पीना है
एक तुम्हारे जाने से, सब कुछ पाकर भी रीता हैं।
अब न कोई ख़ुशी बची, न कोई अब ख्वाइस है
न सुखों को आना है अब, न दुःखों को जाना है।
अब तो ग़मों की छाया में, जिंदगी को जीना है
शब्द नहीं निकलते मुख से, आँखों से ही झरते है
एक तुम्हारे जाने से, सब कुछ पाकर भी रीता हैं।
अब न कोई ख़ुशी बची, न कोई अब ख्वाइस है
न सुखों को आना है अब, न दुःखों को जाना है।
अब तो ग़मों की छाया में, जिंदगी को जीना है
बची हुई साँसों को अब, यादों के संग रहना हैं।
कौन पूछने आएगा, मेरे जीवन के सुख-दुःख को
पास बैठ कर कौन सुनेगा, मेरे मन की बातों को।
जब से तुम बिछड़ी हो मुझसे, अश्रुमेघ बरसते हैं।
[ यह कविता "कुछ अनकही ***" पुस्तक में प्रकाशित हो गई है ]
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