Sunday, August 3, 2014

एक कहानी का अन्त




तुम्हारे जाने के बाद 
सब कुछ सुनसुना 
लग रहा है 
जीवन भी मौत से
बदतर लगने लगा है 

तुम थी तो जिंदगी
भोर की लालिमा थी 
अब तो वो साँझ की
कालिमा बन गयी है 

अब किस 
आशा के सहारे जीवूं
किस के पास  बैठ कर 
अपने मन की बात कहूं 

अब तो 
घुटन
तड़पन
उदासी
अकेलापन
यही रह गया है
जीवन  में

मेरे जीवन में अब
सुख का सावन कभी
नहीं बरसेगा

जीवन की इस साँझ
का अब कोई सवेरा
नहीं होगा

सुहाने सफर में 
चलते-चलते बीच राह 
तुमने मेरी कहानी का 
अंत कर दिया। 



( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )


No comments:

Post a Comment