तुम्हारे जाने के बाद
सब कुछ सुनसुना
लग रहा है
जीवन भी मौत से
बदतर लगने लगा है
तुम थी तो जिंदगी
भोर की लालिमा थी
अब तो वो साँझ की
कालिमा बन गयी है
अब किस
आशा के सहारे जीवूं
किस के पास बैठ कर
अपने मन की बात कहूं
अब तो
घुटन
तड़पन
उदासी
अकेलापन
यही रह गया है
जीवन में
मेरे जीवन में अब
सुख का सावन कभी
नहीं बरसेगा
जीवन की इस साँझ
का अब कोई सवेरा
नहीं होगा
सुहाने सफर में
चलते-चलते बीच राह
तुमने मेरी कहानी का
अंत कर दिया।
( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )
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