पहले थी मोहब्बते जिंदगी
अब वह बात कहाँ ?
सुबह-शाम घूमने जाते
हँस-हँस करके बातें करते
तोड़ फूल हाथों में देते
अब वह बात कहाँ ?
एक दूजे की राह देखते
साथ बैठ कर खाना खाते
मनुहारों से भोजन करते
अब वह मजा कहाँ ?
शाम-सवेरे पूजा करते
भजन-आरती संग में गाते
रागों की झंकार उठाते
अब वह समा कहाँ ?
जब भी हम फुर्सत में होते
अपने मन की बातें करते
अपने मन की बातें करते
पुनर्मिलन की इस जीवन में
अब वह घड़ी कहाँ ?
देश-विदेश घूमने जाते
एक दूजे के संग में रहते
एक दूजे के संग में रहते
चाँद-चांदनी संग था अपना
अब वह साथ कहाँ ?
अब वह साथ कहाँ ?
पहले थी मोहब्बते जिंदगी
अब वह बात कहाँ ?
[ यह कविता "कुछ अनकही ***" में प्रकाशित हो गई है। ]
[ यह कविता "कुछ अनकही ***" में प्रकाशित हो गई है। ]
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