आपणै ब्याव री
पैली तीज रा सातू
आपा गांव में पास्या
आकड़ा रा हरियळ पत्ता
ल्यावण खातर थूं
सहेल्यां सागै गीत गावंती
रिंधरोही मायं गई
आंवती बगत थूं
समलाई नाडी मांय
मैंदी रचिया हाथा स्यूं
आकड़ा रा पत्ता धो लिया
बरसा न बरस बीतग्या
पण नाडी रे पाणी में ओज्यूं
थारे हाथा री मैंहंदी री
सौरम आवै
तीज आंवता ही बोरायोड़ो मन
सपन लोक में खो ज्यावै
थारी यादा पौर-पौर में
उतर ज्यावै।
[ यह कविता "कुछ अनकही ***" पुस्तक में प्रकाशित हो गई है ]
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