Wednesday, July 23, 2014

आज तुम नहीं थी

सुबह का सूरज
आज भी चमक रहा था 
चाँद आज भी 
चांदनी संग आया था
तारे आज भी 
झिलमिला रहे थे
लेकिन आज तुम नहीं थी

बगीचे में फूल
आज भी खिले थे 
तितलियाँ आज भी 
फूलों पर मंडरा रही थी
भँवरें आज भी 
गुनगुना रहे थे 
लेकिन आज तुम नहीं थी

बच्चे आज भी
स्कूल जा रहे थे
दरवाजे पर काली गाय
आज भी रम्भा रही थी
कबूतर आज भी
छत पर दाना चुग रहे थे 
लेकिन आज तुम नहीं थी

पूजा की घंटियों के साथ
आज भी सवेरा हुआ था 
आरती आज भी 
गाई गई थी 
तुलसी चौरे पर आज भी
दीपक जला था
लेकिन आज तुम नहीं थी

काव्यात्मक दग्धता
आज भी मचल रही थी 
हाथ लिखने को 
आज भी आतुर थे 
लेकिन मैं लिख नहीं पाया
कागज़ कलम तो थी
लेकिन आज तुम नहीं थी।


                                                 [ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]

फरीदाबाद 
दिनांक : २३ जुलाई २०१४ 







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