Friday, November 28, 2014

थारी ओळूं (राजस्थानी कविता)


थारी ओळूं
ओज्युं भूली कोनी
म्हारे तांई पुगण रो मारग

ओळूं रे सागै
चालै है आंख्यां रा आंसू
नितरे मारग

आज ताईं
संचनण उबी है
हिवड़ा में थारी छिब

आँख्या बंद कर
झांकता ही याद आवै
थारी उणियारे री छिब

थारी बातां
अर मुंडै री मुळक
आज भी आवै है याद

मन में
आज भी उठै है हूंक
जद-जद करूँ तनै याद

तू तो चली गई
दुनियादारी सूं होय
पूरी मुगत

पण म्हैं आज भी
थारै बिना एकलो
रियो हूँ भुगत।



[ यह कविता "कुछ अनकही ***" पुस्तक में प्रकाशित हो गई है ]




Thursday, November 27, 2014

गीत प्यार रा गांवाला (राजस्थानी कविता)




सदभाव बढ़ावां आपस रो, हेत-प्रेम से रेवांला
धुप खिले हर आंगण मं,  ऐसो सूरज ल्यावांला।

                                 सगळा धरमा ने गले लगा, गीत हेत रा गांवाला
                                विश्व बन्धुत्व फैलावाला, भारत रो मान बढ़ावाला।

                     
साधू-संता री धरती पर, धर्म-ध्वजा  फैरावांला     
शुर-वीरां री धरती पर, वीरां रो मान बढ़ावांला। 
                               
                                    गांव-गांव, ढाणी-ढाणी, आखर अलख जगावांल
                                    साफ़ सफाई राखाळा, धरती ने स्वर्ग बणावांला।

सगळा हाथा ने काम मिलै, ऐसी जुगत बणावांला
दिन में ईद, रात दीवाली,  हर घर मायं मनावांला। 

                                   ऊँच-नींच अर जात-पाँत ने, मिल कर दूर भगावांला
                                    टाबरियां न पढ़ा - लिखा, मिनखां में मान बढ़ावांला।

 सगळा ने मुफ्त इलाज़ मिलै, ऐसी  तजबीज बिठावालां                                                                      
 सोने री चिड़िया भारत ने, अब पाछो सम्मान दिरावांला।

Tuesday, November 18, 2014

पेट फूली रोटी (राजस्थानी कविता)


जीमती बगत
ओज्यूँ  याद आ ज्यावै
माँ रे हाथ री रोटी

माँ तुवां स्यूं रोटी उतार
चिंपिया स्यूं काढती खीरां
उलट- पुलट सेंकती
पेट फूली रोटी

रोटी पर घाल देंवती
घणों सारों बिलोवण रो घी
अर मुट्ठी भर शक्कर

म्है थाली में चूरतो रोटी
बणातो चूरमो
मिलाय घी अर शक्कर

दिल रे झरोखा स्यूं
आज भी कोनी बिसरी
पुराणी यादां

माँ आज भी आँसू बण
ढळबा लाग ज्यावै
चूरमा रै मिठास ज्यूँ।


OK / OK / OK

तुम्हारी ये तस्वीरें



सुनहली तारीखों को
आभामय और अविस्मणीय
बनाए रखने हेतु तुम
संजोये रखती थी
सदा तस्वीरें

अभिनव सोच थी तुम्हारी
बड़े जतन से सहज कर
रखा करती थे एल्बम में
सारी तस्वीरें

पचास वर्ष के संगसफर में
हमारे प्रेम और विश्वास ने
जो अमृत रस घोला
उस की साझेदार हैं
ये तस्वीरें

कितने रंग भरे थे हमने
अपने जीवन में
उन्ही की मीठी यादें हैं
ये तस्वीरें

मेरी स्मृतियां जैसे ही
लिपटती है तस्वीरों के संग
बोलने लग जाती है
ये तस्वीरें

तुम्हारे विच्छोह के
गम को दूर करने
आज मेरा सहारा बनी है
ये तस्वीरें।


  [ यह कविता "कुछ अनकही ***" में प्रकाशित हो गई है। ]








Sunday, November 16, 2014

आउटडेटेड



एक तुम्हीं तो थी
जिसके साथ मैं किसी भी 
बात को ले कर 
झगड़ लिया करता था 

तुम से मिले
इस अधिकार का
मैं बेहिचक इस्तेमाल 
करता था 

अब, जब तुम चली गई 
तो किस के साथ 
वाद-विवाद करूँ

अब तो मन को मना लिया 
चाहे झूठ हो या सच
सभी निर्विवाद स्वीकार करूँ

अब कोई भी कुछ पूछता है 
मैं अपनी आँखे बंद कर 
मौन स्वीकृति दे देता हूँ 

किसी भी बात को लेकर
मैं वाद-विवाद नहीं करता 
उन्ही की बात को मान लेता हूँ 

आजकल नयी पीढ़ी
अपने आप को ज्यादा
समझदार समझती है 

वो बुजर्गो को अब
आउटडेटेड
समझती है। 

तुम साथ छोड़ कर चली गई

 सुख गया जीवन का उपवन,रहा कभी जो हरा-भरा
पतझड़ आया जीवन में,तुम साथ छोड़ कर चली गई।

 दुःख की लंबी राहों में, खुशियों के दिन तो बीत गए
                                             चलते-चलते राहों में, तुम साथ छोड़ कर चली गई। 

मैंने आँखों में डाला था,जीवन के सपनों का काजल
संगी-साथी कोई नहीं, तुम साथ छोड़ कर चली गई

     दुःख मेरा अब क्या बतलाऊँ, दिल रोता है रातों में
     भीगे पलकें अश्कों से,तुम साथ छोड़ कर चली गई।

बिस्तर की हर सिलवट से,महक तुम्हारी ही आती
छाई उदासी मन में, तुम साथ छोड़ कर चली गई।

गीत अधूरे रह गए मेरे, अब क्या ग़मे बयान करुं 
  बिखरी सारी आशाएं,तुम साथ छोड़ कर चली गई।    


[ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]

Tuesday, November 11, 2014

आयशा की दादी



डेढ़ साल की आयशा
आँगन में खेल रही है
जब उसे भूख लगेगी
वो रोने लगेगी

जब नींद आएगी
मम्मी की गोदी में
जाकर सो जाएगी

उसे नहीं पता
उसको गोद खिलाने वाली
उसकी दादी आज उसे छोड़
सदा के लिए चली गई

जब भी कोई पूछता है
'आयशा दादी जी कहाँ है'
वो अपनी नजर और अंगुली
तस्वीर की तरफ उठा देती है

उसे नहीं याद रहेगा
उसकी दादी उसे कितना
प्यार करती थी

कैसे दिन भर
उसे गोद में उठाये
खिलाती थी

कैसे उसकी अंगुली पकड़
पार्क में घुमाने
ले जाया करती थी

अभी तो वो खेलेगी
 हँसेगी, रोएगी और
रूठेगी

और हमें अपना
सारा काम छोड़
उसे गोद में लेनी होगी।


NO 

Monday, November 10, 2014

मेरे मन की वेदना

             

अगर तुमने मुझे इतना प्यार नहीं किया होता 
तो आज मेरी आँखों से अश्रु-जल नहीं बहता।

अगर तुम्हारा हाथ सदा मेरे हाथ में रहता
                                                     तो मेरा जीवन इतना बेसहारा नहीं होता। 

अगर तुमने ढलती उम्र में मेरा साथ दिया होता
तो आज मुझे दुःख का दिन नहीं देखना पड़ता। 

                                                अगर जाते समय तुमने मुझे कह दिया होता                                                   तो तुम्हारे जाने का इतना गम मुझे नहीं होता। 

अगर मैं तुम्हारी सूरत आँखों से निकाल पाता                                                                                               
तो मुझे भी तुम्हारे जाने पर सब्र आ गया होता।                                                                                             

अगर तुम्हारी रवानगी किसी तरह टाल देता 
                                                   तो आज मेरा जीवन इतना तनहा नहीं होता।     
                                                


                                           [ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]

Sunday, November 9, 2014

हे मृत्यु जननी !

मृत्यु उस दिन
एक ममतामयी माँ
की तरह आई थी

उसने बड़े प्यार से
तुम्हें अपने अंक
लगाया था

स्नेह के साथ
तुम्हारे सिर को
सहलाया था

धीरे-धीरे थपकी देकर
तुम्हें सदा के लिए
सुला दिया था

हम कुछ समझ पाते
तुम्हारा आगे का सफर
शुरू हो गया था

हे मृत्यु जननी!
स्वागत तुम्हारा
जब भी तुम आओ
इसी तरह से आना

प्यार की थपकी देकर
अपने अंक लगाना
अंगुली पकड़
संग ले जाना।

Monday, November 3, 2014

मेरे ख़्वाबों का चमन उजड़ गया



मेरे जीवन का ख्व्वाब टूट गया                                                              
       मेरे दिल का गुलशन सुख गया    
               मेरे जीवन साथी तुम बिछुड़ गए
                      मेरे ख़्वाबों का चमन उजड़ गया।

मेरी खुशियों का सूरज डूब गया
        मेरी बहारों का मौसम गुजर गया
              मेरे हमसफ़र तुम ओज़ल हो गए
                      मेरे ख़्वाबों का चमन उजड़ गया।

मेरी मुहब्बत का चिराग बुझ गया
       मेरी आशाओं का महल ढह गया
               मेरे हमराही तुम वादा तोड़ गए
                     मेरे ख़्वाबों का चमन उजड़ गया।

मेरा मधुमयी मधुमास बीत गया
           मेरा जीवन गागर रीत गया 
                 मेरे मधुबन के पाहुन तुम चले गए


                          मेरे ख़्वाबों का चमन उजड़ गया।




[ यह कविता "कुछ अनकही ***" पुस्तक में प्रकाशित हो गई है ]

मगर बहुत उदास गुजरेगी

मौसमी बुखार है
दो दिन से घर पर
आराम कर रहा हूँ

कमरे में सोया
तुम्हारी तस्वीर को
देख रहा हूँ

मैं जानता हूँ कि अब
तुम मेरा सिर दबाने
नहीं आओगी

मेरे सिरहाने बैठ
सिर पर दवा
नहीं लगाओगी

बिखर गई है जिंदगी
तुम्हारे इस तरह
चले जाने से

तनहा हो गया जीवन
हो सके तो लौट आओ
किसी बहाने से


गुजर तो जाएगी
यह जिंदगी
मगर बहुत उदास
गुजरेगी।