थारी ओळूं
ओज्युं भूली कोनी
म्हारे तांई पुगण रो मारग
ओळूं रे सागै
चालै है आंख्यां रा आंसू
नितरे मारग
आज ताईं
संचनण उबी है
हिवड़ा में थारी छिब
आँख्या बंद कर
झांकता ही याद आवै
थारी उणियारे री छिब
थारी बातां
अर मुंडै री मुळक
आज भी आवै है याद
मन में
आज भी उठै है हूंक
जद-जद करूँ तनै याद
तू तो चली गई
दुनियादारी सूं होय
पूरी मुगत
पण म्हैं आज भी
थारै बिना एकलो
रियो हूँ भुगत।
[ यह कविता "कुछ अनकही ***" पुस्तक में प्रकाशित हो गई है ]
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