Friday, July 31, 2015

तुम्हारी यादें - हाइकु

यादें गरजे
सावन की घटा सी
आँखें बरसे।

यादों का पंछी
मन के पिंजरे में
फड़फड़ाए।

सावन झूमा
यादों ने गाठें खोली
तड़फे जिया।

पहली वर्षा
संग-संग भीगना
तुम्हारी यादें।

बिना रोए ही
बहे आँखों से आँसूं
तुम्हारी यादें।

दिल में बसी
आँसुओं में ढलती
तुम्हारी यादें।

छलक आती
पलकों से बदली
तुम्हारी यादें।

सहेज रखी
मन के अल्बम में
तुम्हारी यादें।


  [ यह कविता "कुछ अनकही ***" में प्रकाशित हो गई है। ]


दिल के झरोखे में

आज अकेला
सुनी संध्या में
उदास मन को बहलाने
झांकने लगा तुम्हारी
अलमारी में

अचानक शादी की
पचासवीं वर्ष-गाँठ पर पहनी
तुम्हारी साड़ी
आ गयी मेरे हाथ में

साड़ी को छुआ
तो लगा जैसे तुम समाई हो
उसके रोम-रोम में

तुम्हारी देह की
संदिल गंध समा गई
मेरे पोर-पोर में

लगा जैसे अचानक
कहीं से आकर तुमने मुझे
भर लिया हो बाँहों में

मैं अपलक निहारता रहा
तुम्हारी साड़ी को
तुम्हारी कंचन काया की छवि
छाने लगी मेरी यादों में

चलचित्र की तरह
उस रंग भरी शाम की
तस्वीरें तिरने लगी मेरी आँखों में

आँखों से बहने लगे अश्रु
सारी उदासी बह गई
रह गया केवल तुम्हारा मेरा प्रेम
दिल के झरोखे में।


  [ यह कविता "कुछ अनकही ***" में प्रकाशित हो गई है। ]






Saturday, July 25, 2015

मजा नहीं आता

जीवन के राहे -सफर में बिछुड़ गई हमसफ़र
भीगे नयनों से अब रास्ता भी नजर नहीं आता।        
       
                                                 
                                                        यूँ तो चमन में बहुत से फूल खिले हैं मगर              
                               मेरी चाहत का फूल अब नजर नहीं आता।                    

तुम से बिछुड़ कर दिल का सुकून खो दिया                                                                                                     लोग कहते हैं इस दर्द का मरहम नहीं आता।                                                                                                                                                                                                
          दिन ढलते ही जलने लगते हैं यादों के दीप
            अब तो रात में सुहाना सपना भी नहीं आता।
                     
    संसार  में भरे  पड़े हैं सुन्दर से सुन्दर नज़ारे                                                                                                    मगर तुम्हारा बांकापन अब नजर नहीं आता।                                                                                                          
                    जीवन में छा गए हैं तन्हाई और ग़मों के अँधेरे         
           सांसे चलती है मगर जीने का मजा नहीं आता।


[ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]

Friday, July 24, 2015

हेत हबोळा खावै जी (राजस्थानी कविता)

घाटा-पोटा बिरखा बरसै
बिजल्या चमकै जोर जी,
दादर,मौर,पपीहा बोले 
बागा पड़ग्या झूला जी। 

झुमझुम कर झोला खावै
खेत खड्यो हरियाळो जी,
खड़ी खेत में कामण भीजै
हिचक्यां आवै जोर जी।

हुळक-हुळक ने हिवड़ो रोवै
पीव बसै परदेशां जी,
ऊँचा मंगरा जाय उडीकै 
मेड़या काग उड़ावै जी। 

सावण तीज सुहाणी आई
पिवजी घरां पधारया जी,
घूँघट माइं मुळक कामण
हेत हबोळा खावै जी ।



Thursday, July 23, 2015

अब कहूँ तो भी क्या ?

जीवन के सफर में हम दोनों संग-संग चले                                  
तुम चली गई छोड़ कर, अब कहूँ तो भी क्या ?       

           तुम तो अब आओगी नहीं मेरे संग में हँसने       
       मैं हँस कर जमाने को दिखाऊँ, तो भी क्या  ?

ढलती उम्र में बेसहारा कर चली गई तुम                                                                                                         
बिखर गए सारे अरमान, कहूँ तो भी क्या ?

      अश्क आँखों से ढलते रहते हैं दिन-रात
       बिखर गई जिंदगी, अब कहूँ तो भी क्या ?

मेरा बहारों भरा गुलसन वीरान हो गया   
आँखों से बरसता है सावन, कहूँ तो भी क्या ?            

मैं प्रतीक्षा करता रहा तुम्हारे लौट आने की
 तुम नहीं आई लौट कर,अब कहूँ तो भी क्या ?


[ यह कविता "कुछ अनकही ***" में प्रकाशित हो गई है। ]

Tuesday, July 21, 2015

पहले वाली बात नहीं

 सब कुछ है पर तुम नहीं 
जीवन में सुख चैन नही
दिन कटता रीता-रीता 
सपनों वाली रात नहीं।

ठाट-बाट छूटा जीवन से 
 होठों पर मुस्कान नहीं
जीवन की सुध-बुध भुला  
काया का भी साथ नहीं।

आँखों में हैं रात गुजरती
 प्यार भरे दिन रहे नहीं 
जीवन फिर से हरा बने
अब ऐसी बरसात नहीं।

मौजो के दिन बीत गए
सुख के सागर रहे नहीं
 दर्द भरा है मेरा जीवन 
  पहले वाली बात नहीं।




                                               [ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]





Monday, July 13, 2015

एक बार फिर से

रिमझिम फुहारों में
मन भीगना चाहता है
तुम्हारे संग-संग
एक बार फिर से

धरती की उठती महक में
मन भरना चाहता है
तुम्हें अपनी बाहों में
एक बार फिर से

भीगी घास पर
मन दौड़ना चाहता है
तुम्हारे संग-संग
एक बार फिर से

सावन की बरखा में
मन झूमना चाहता है
तुम्हारे संग-संग
एक बार फिर से

बसंती बहारों में
मन खेलना चाहता है
होली तुम्हारे संग-संग
एक बार फिर से

मेरे प्यार की पनाहों में
हो सके तो लौट आओ
एक बार फिर से।



[ यह कविता "कुछ अनकही ***" में प्रकाशित हो गई है। ]

Thursday, July 9, 2015

मुझको स्कूल जाना है

मम्मी मुझको पढ़ना है
ए.बी.सी.डी लिखना है
भैया के संग रोज सवेरे
मुझको स्कूल जाना है।

कॉपी,पेंसिल लाकर दो
मुझको भी तो लिखना है
सुन्दर सा एक बस्ता दो 
मुझको स्कूल जाना है।

क ख ग से क्ष त्र ज्ञ तक 
जल्दी-जल्दी पढ़ना  है 
स्कूल की ड्रेस मांगा दो 
मुझको स्कूल जाना है।

इंटरवेल में खाना भी 
भैया के संग खाना है 
छुट्टी की घंटी बजने पर
भैया संग घर आना है।  




Friday, July 3, 2015

मरुधर वाला देश (राजस्थानी कविता)

चालो रे साथीड़ा चाला 
मरुधर वाला देश

सावण सुरंगों लागीयो 
कोई रिमझिम बरसे मेह 
बागा बोल्या मोरिया
कोई चौमासा रो नेह।

बाजरी री नूंवी कूंपळा
गीत मिलण रा गावै,
आपाने आयोड़ा देख
हिवड़ै हरख मनावै।

मोरण, बोर, काकड़ी 
मीठा गटक मतीर 
चौमासा में घणा उडीके 
गाँव-गळी रा बीर। 

पलक बिछावै भायळा 
हिवड़े करे दुलार 
सोनळ बरणा धोरिया 
घणी करे मनवार। 

ऊँटा चमकै गोरबन्द
पग नेवर झणकार    
अलगोजा री तान पर 
घणों करे सत्कार। 

Wednesday, July 1, 2015

जीवन में हमसफ़र चाहिए

 बिन हमदम के जीवन सूना 
 मुस्किल है बिन साथी जीना 
 जैसे मछली को नीर चाहिए 
  जीवन में हमसफ़र चाहिए। 

                                   दोनों का है सम्बन्ध सलोना    
                                    एक दूजे  बिन जीवन सूना  
जैसे मोती को चमक चाहिए                                                        
     जीवन में हमसफ़र चाहिए।                                                         

 दुःख-सुख दोनों साथ निभाते    
  हँस-हँस कर के जीवन जीते   
     जैसे सागर को तट चाहिए   
    जीवन में हमसफ़र चाहिए।  
           
संग सफर से जीवन महके                                                     
         पतझड़ में भी सावन चहके                                                              
         जैसे रजनी को चाँद चाहिए                                                              
          जीवन में हमसफ़र चाहिए।


 [ यह कविता "कुछ अनकही ***" में प्रकाशित हो गई है। ]