जीवन के राहे -सफर में बिछुड़ गई हमसफ़र
भीगे नयनों से अब रास्ता भी नजर नहीं आता।
भीगे नयनों से अब रास्ता भी नजर नहीं आता।
यूँ तो चमन में बहुत से फूल खिले हैं मगर
मेरी चाहत का फूल अब नजर नहीं आता। तुम से बिछुड़ कर दिल का सुकून खो दिया लोग कहते हैं इस दर्द का मरहम नहीं आता।
अब तो रात में सुहाना सपना भी नहीं आता।
संसार में भरे पड़े हैं सुन्दर से सुन्दर नज़ारे मगर तुम्हारा बांकापन अब नजर नहीं आता।
जीवन में छा गए हैं तन्हाई और ग़मों के अँधेरे
सांसे चलती है मगर जीने का मजा नहीं आता।
[ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]
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