Friday, July 24, 2015

हेत हबोळा खावै जी (राजस्थानी कविता)

घाटा-पोटा बिरखा बरसै
बिजल्या चमकै जोर जी,
दादर,मौर,पपीहा बोले 
बागा पड़ग्या झूला जी। 

झुमझुम कर झोला खावै
खेत खड्यो हरियाळो जी,
खड़ी खेत में कामण भीजै
हिचक्यां आवै जोर जी।

हुळक-हुळक ने हिवड़ो रोवै
पीव बसै परदेशां जी,
ऊँचा मंगरा जाय उडीकै 
मेड़या काग उड़ावै जी। 

सावण तीज सुहाणी आई
पिवजी घरां पधारया जी,
घूँघट माइं मुळक कामण
हेत हबोळा खावै जी ।



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