Monday, September 5, 2011

मौसम बदलता है,

हर बार
जा कर वापिस
 लौट आने वाला मौसम
अच्छा लगता है

सर्दियों की गुनगुनी धूप
बसंत में कोयल की कूक
सावन की रिमझिम
मन को भाती है

याद आ जाती है
 पिछली बातें उस मौसम की
 जब वह लौट कर आता है

मौसम का
बदल कर लौट आना
  कुछ ऐसे ही लगता है
जैसे उसका पीहर जाकर
लौट आना। 

कोलकत्ता
५ सितम्बर, २०११
(यह कविता  "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )

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