हर बार
जा कर वापिस
जा कर वापिस
लौट आने वाला मौसम
अच्छा लगता है
सर्दियों की गुनगुनी धूप
बसंत में कोयल की कूक
सावन की रिमझिम
मन को भाती है
मन को भाती है
याद आ जाती है
पिछली बातें उस मौसम की
जब वह लौट कर आता है
जब वह लौट कर आता है
मौसम का
बदल कर लौट आना
कुछ ऐसे ही लगता है
बदल कर लौट आना
कुछ ऐसे ही लगता है
जैसे उसका पीहर जाकर
लौट आना।
लौट आना।
कोलकत्ता
५ सितम्बर, २०११
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
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