जब पीला पत्ता
डाल से गिरता है
हरा पत्ता थोड़ा
कांप उठता है
लेकिन
थोड़ी देर बाद
शान्त हो जाता है
बसंतआते ही
हरा पत्ता फिर
लहलहा ने लगता है
वो नहीं जानता
मरने के बाद
आत्माओं के सफ़र
के बारे में।
कोलकता
२ सितम्बर, २०११
२ सितम्बर, २०११
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
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