बाजे ढोल मृदंग आज
फिर होली आई रे
तन-मन हर्षित हुआ आज
फिर फागुन आयो रे
चुनर हो गई लाल आज
फिर होली आई रे
भीजे कंचन देह आज
फिर फागुन आयो रे
बरसे रंग गुलाल आज
फिर होली आई रे
जित देखो तित धूम आज
फिर फागुन आयो रे
मन वृन्दावन बना आज
फिर होली आई रे
मिल कर रास रचाएं आज
फिर फागुन आयो रे।
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" पुस्तक में प्रकाशित हो गयी है )