महानगरो के चौराहों पर
गाड़ी रुकते ही
अक्सर आ जाते हैं
भीख माँगते बच्चे
चार- पाँच साल के
अर्धनग्न,मैले कपड़े
नंगे पाँव दौड़ते
हाथ फैलाए बच्चे
कातर-भाव से
हाथ को मुँह के पास
ले जा कर खाली पेट
दिखाते बच्चे
ललचाई आँखों से
दो रुपये दे दो बाबूजी
की रटलगाकर
भीख माँगते बच्चे
पैसे मिलते ही
खुश हो कर एक से
दूसरी गाड़ी की तरफ
लपकते हुए बच्चे
हरी बत्ती जलते ही
किनारे की तरफ दौड़
अगली लाल बत्ती होने
का इन्तजार करते बच्चे
यह है स्वतंत्र भारत के
चौसठ वर्ष की
प्रगति को दिखाते
भविष्य के प्रतीक बच्चे।
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
गाड़ी रुकते ही
अक्सर आ जाते हैं
भीख माँगते बच्चे
चार- पाँच साल के
अर्धनग्न,मैले कपड़े
नंगे पाँव दौड़ते
हाथ फैलाए बच्चे
कातर-भाव से
हाथ को मुँह के पास
ले जा कर खाली पेट
दिखाते बच्चे
ललचाई आँखों से
दो रुपये दे दो बाबूजी
की रटलगाकर
भीख माँगते बच्चे
पैसे मिलते ही
खुश हो कर एक से
दूसरी गाड़ी की तरफ
लपकते हुए बच्चे
हरी बत्ती जलते ही
किनारे की तरफ दौड़
अगली लाल बत्ती होने
का इन्तजार करते बच्चे
यह है स्वतंत्र भारत के
चौसठ वर्ष की
प्रगति को दिखाते
भविष्य के प्रतीक बच्चे।
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
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