Tuesday, January 31, 2012

होली आई रे

बाजे ढोल मृदंग आज
फिर होली आई रे  
तन-मन हर्षित हुआ आज
फिर फागुन आयो रे  

चुनर हो गई लाल आज
फिर होली आई रे  
भीजे कंचन देह आज
फिर फागुन आयो रे  

बरसे रंग गुलाल आज
फिर होली आई रे 
जित देखो तित धूम आज
फिर फागुन आयो रे 

मन वृन्दावन बना आज
फिर होली आई रे  
मिल कर रास रचाएं आज
फिर फागुन आयो रे। 

(यह कविता "कुमकुम के छींटे"  पुस्तक में प्रकाशित हो गयी  है )

4 comments:

  1. वैसे यह कविता मैने अपनी पुस्तक "कुमकुम के छीटो " के लिऐ लिखी थी जो अभी प्रेस मे छप रही है |

    ReplyDelete
  2. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete