आदमी रो आदमी स्यू
जद विसवास उठ्ग्यो
जणा सोच्यो क्यूँ ने भाटै पर
विसवास करयो जावै |
कोनी बिसवास हुवे
निराकार में
राखणो हुसी
आकार मुंडागे |
थरप दियो भाटै ने
देवता बणाय ओ
मानली घङ्योङी मूरत में
विसवास री खिमता |
चढावण लागग्यो
मेवा 'र मिस्ठान
देवण लागग्यो
कुमकुम का छींटा |
भाटो बण देवता पुजीजग्यो
भोलो जीव पतीजग्यो |
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
जद विसवास उठ्ग्यो
जणा सोच्यो क्यूँ ने भाटै पर
विसवास करयो जावै |
कोनी बिसवास हुवे
निराकार में
राखणो हुसी
आकार मुंडागे |
थरप दियो भाटै ने
देवता बणाय ओ
मानली घङ्योङी मूरत में
विसवास री खिमता |
चढावण लागग्यो
मेवा 'र मिस्ठान
देवण लागग्यो
कुमकुम का छींटा |
भाटो बण देवता पुजीजग्यो
भोलो जीव पतीजग्यो |
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
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