कियाँ भुलूँ टाबर पणा री बातां
घड़ी भर कौनी आवड़तो
आपाने एक दूजा'र बिना
चाँद स्यूं फुटरो लागतो
रात बीत ज्यावंती
कदै नी सोची ही के इण भांत
[ यह कविता "कुछ अनकही ***" पुस्तक में प्रकाशित हो गई है ]
जद हैत रे रूंख हेठै बैठ'र
आपा करता ग़ुरबत
आपा करता ग़ुरबत
घड़ी भर कौनी आवड़तो
आपाने एक दूजा'र बिना
चाँद स्यूं फुटरो लागतो
थारो उणियारों
अर मिसरी स्यूं मीठी
लागती थारी बातां
रात बीत ज्यावंती
पण नीवड़ती कौनी
आपणै मनड़ै री बातां
थारी झिलमिल
तारा आळी ओढणी अर
तिरछी निजरां स्यूं झांकणो
ओज्युं याद आवै
कठै गई थारी बा परीत
थारी झिलमिल
तारा आळी ओढणी अर
तिरछी निजरां स्यूं झांकणो
ओज्युं याद आवै
कठै गई थारी बा परीत
अर कठै गई बे बातां
ओ आंतरो कियां पसरग्यो
ओ आंतरो कियां पसरग्यो
चाणचूक आपण बीच
कदै नी सोची ही के इण भांत
आंतरो पड़ ज्यावालो
आपां दोन्या रै बीच।
आपां दोन्या रै बीच।
[ यह कविता "कुछ अनकही ***" पुस्तक में प्रकाशित हो गई है ]
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