तुम्हारे बिछुड़ते ही मेरी उम्र ढलने लग गई
[ यह कविता "कुछ अनकही ***" में प्रकाशित हो गई है। ]
तुम रहती तो उम्र का अहसास नहीं होता।
मेरे सुरमई धुप वाले दिनों का अंत हो गया
मुझ से प्यार भरे गीतों का सृजन नहीं होता।
तुम्हारे विछोह का दर्द रातों रुलाता है मुझे
भीगता रहता है तकिया पर दीदार नहीं होता।
बहारों के मौसम में तुम छोड़ कर चली गई
तुम रहती तो जीवन में पतझड़ नहीं होता।
तुम्हारे जाते ही खुशियों की शाम ढल गई
आँखों से बहते हैं अश्रु दर्द कम नहीं होता।
एकाकी जीवन जीना बड़ा कठिन लगता है
अब मुझे से तुम्हारा वियोग सहन नहीं होता।
तुम्हारा निश्छल प्रेम मुझे सदा याद रहेगा
सोचता हूँ हर कोई तुमसा क्यों नहीं होता।
[ यह कविता "कुछ अनकही ***" में प्रकाशित हो गई है। ]
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