साथ मेरा बचपन का छुटा
मेरे मन का मीत जो रूठा
जीवन के मिट गए नज़ारे
कैसे जीवूं बिना तुम्हारे।
कैसे जीवूं बिना तुम्हारे।
सुकून नहीं अब दिल को मेरे
दुःख-दर्द बन गए साथी मेरे
जीवन के सब सपने बिखरे
कैसे जीवूं बिना तुम्हारे।
विरही मन को दर्द रुलाए
याद तुम्हारी जिया जलाए
बहते आँखों से अश्रु पनारे
कैसे जीवूं बिना तुम्हारे।
जब भी याद तुम्हारी आए
अंतस की पीड़ा मुस्काए
जीवन के बुझ गए सितारे
कैसे जीवूं बिना तुम्हारे।
मेरे सारे स्वप्न खो गए
मन वीणा के तार टूट गए
छूट गए अब सभी सहारे
कैसे जीवूं बिना तुम्हारे।
[ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]
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