प्रभु ! हम तुम्हे भूलें नहीं
कहने से काम चलेगा नहीं
पूरी तरह सर्मर्पित हो कर
हर कर्म करे प्रभु निमित्त
समर्पित कर दें जीवन प्रभु में
निमित्त हो जाये प्रभु हाथ में
चाहे पत्तो की तरह उड़ाएं
चाहे फूलो की तरह खिलाएं
प्रभु जो करें हम सिर धरे
सब कुछ प्रभु के नाम करें।
कोलकत्ता
१० अगस्त, २०११
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
वाह पहली बार पढ़ा आपको बहुत अच्छा लगा.
ReplyDeleteएक सम्पूर्ण पोस्ट और रचना!
ReplyDeleteयही विशे्षता तो आपकी अलग से पहचान बनाती है!