आज कल
मै प्रकृति के संग
मै प्रकृति के संग
रहता हूँ
रोज सवेरे
मुझे सूरज उठाने आता है
मुझे सूरज उठाने आता है
किरणों को भेज कर
मुझे जगाता है
मै निकल जाता हूँ
प्रातः भ्रमण के लिए
अपनी सेहत को तरोताजा
रखने के लिए
रास्ते में
ठंडी- ठंडी हवाएं
ठंडी- ठंडी हवाएं
तन -बदन को शीतलता
प्रदान करती है
प्रदान करती है
पेड़ो की
डालियाँ झुक-झुक कर
अभिनन्दन करती है
डालियाँ झुक-झुक कर
अभिनन्दन करती है
जूही, बेला,
चमेली की खुशबू
चमेली की खुशबू
वातावरण को सुगन्धित
कर देती है
कर देती है
पंछी मुझे देख
कर चहचहा उठते हैं
कर चहचहा उठते हैं
मौर मुझे देख नाचने लगते हैं
भंवरे मेरे
लिए गुंजन करते हैं
लिए गुंजन करते हैं
हिरन मेरे लिए चौकड़ियां भरते हैं
प्रकृति ने
कितना कुछ दिया है
कितना कुछ दिया है
कितने प्यार से मेरा स्वागत किया है
ये झरने,ये झीले
ये नदी, ये पहाड़
सभी प्रकृति ने बनाये हैं मेरे लिए
कितने रंगों से सजाया है मेरे लिए
बड़ी अच्छी
लगती है सुबह की घड़ी
लगती है सुबह की घड़ी
चहकते पंछी और महकते फूलों की लड़ी।
कोलकत्ता
१७ अगस्त, २०११
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
No comments:
Post a Comment