ऐसा भी आएगा
सुदूर युग में ही सही
लेकिन एक दिन
आएगा जरूर
जब कोई भी अमीर या
गरीब नहीं होगा
सभी समान रूप से
सम्पन्न होंगे
जब कोई भी असहाय या
निर्बल नहीं होगा
सभी स्वस्थ और
नीरोग होंगे
जब रंगभेद और
जातपांत का भेद नहीं होगा
सभी भाईचारे के साथ
प्रेम से रहेंगे
जब अणुबम और
मिसाइले नहीं बनेंगी
दुनिया के लोग शान्ति और
सौहार्द से रहेंगे
जब अपराध और अत्याचार
का कहीं नाम नहीं होगा
सभी ईमानदारी और
सच्चाई पर चलेंगे
जब धर्म और मजहब के नाम
पर लोग नहीं बंटेंगे
मानव सेवा को ही
सर्वोच्च समझेंगे
जब युद्ध और संघर्षों का
नाम नहीं होगा
इंसान की आँख से
आँसू नहीं गिरेंगे
जब युद्ध और संघर्षों का
नाम नहीं होगा
इंसान की आँख से
आँसू नहीं गिरेंगे
जब दुनिया सीमाओं में
नहीं बंटी होगी
सभी वसुधैव कुटुंब के
सिद्धांत पर जियेंगे
जब हर तरफ सुख ही
सुख बरसेगा
पूरा ब्रहमाण्ड धरती को
ही स्वर्ग समझेगा
एक दिन
ऐसा आएगा जरूर,
सुदुर युग में ही सही
लेकिन आयेगा जरुर।
कोलकाता
८ अगस्त, 2011
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
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