Saturday, March 29, 2025

वसंतोत्सव पर मन का मौर नाचने लगा।

वसंतोत्सव पर यौवन बहकने लगा  
तन हर्षित मन  पुलकित होने लगा 
मलय  पवन धरा पर इठलाने लगी    
शहदिली रातों का दीप जलने लगा। 

मौसम का मिजाज भी बदलने लगा 
जंगल में गुलमोहर भी दहकने लगा
साँस - साँस  चन्दन बन महक उठी 
प्रेयसी पर मिलन उन्माद छाने लगा। 

बन-बाग़न में अमुआ भी बौराने लगा 
फूलों की गंध से चमन महकने लगा 
बेबस मन अनुबंध तोड़ निकल पड़ा 
गौरी के आँचल में बसंत मचलने लगा। 

अनुरागी भंवरा कलियों से मिलने लगा 
चिरैया की नाच पर चिरौटा झूमने लगा 
पेड़ों  से आलिंगन कर बेलें झूमने लगी 
मदनोत्सव पर मन का मौर नाचने लगा। 





Saturday, March 8, 2025

शब्दों का प्रयोग

शब्दों से मत गिराओ पत्थर 
शब्दों से मत चलाओ नस्तर 
शब्दों से मत चुभाओ खंजर
शब्दों से मत निकालो जहर । 

शब्दों में भरो प्यार का गुंजन 
शब्दों में लाओ मृदु मुस्कान 
शब्दों से बहाओ सुख सुमन 
शब्दों से करदो दुःख समन। 

शब्दों से गावों गीत उजास 
शब्दों में लावो प्रीत हुलास 
शब्दों से झरे सदा मधुमास
शब्दों में बहे सदा परिहास।  

शब्द लगे सदा ही रसमय 
शब्द बने सदा ही सुखमय
शब्द निकले सदा मधुमय
शब्द झरे सदा ही प्रेममय। 




Sunday, March 2, 2025

आस्था का केंद्र कुम्भ

महाकुम्भ के पावन पर्व को पहचानो 
त्रिवेणी  में नहाना  है ह्रदय  में ठानो 
मिलता सैकड़ों वर्षों में ऐसा अवसर  
कुम्भ को जीवन का सुअवसर जानो। 

कुम्भ के महात्म्य को समझना सीखो 
आगम - निरागम को समझना सीखो 
मिलता है नसीबों से  सुहाना अवसर 
संतो के दर्शनों का लाभ लेना सीखो।  

कुम्भ  हमारी संस्कृति की पहचान है 
यह गंगा,यमुना,सरस्वती का संगम है 
यह करोड़ों जनों केआस्था का केंद्र है 
कुम्भ भारत को ईश्वर का वरदान है। 

कुम्भ में स्नान करने जो भक्त जाते हैं  
एक डुबकी में सारे पाप कट जाते हैं 
शृद्धा भक्ति से पूजन करने वाले सदा
संतों के आशीर्वाद को प्राप्त करते हैं।



Monday, February 3, 2025

अपने सोने के महल बनवाते रहें हैं

रोशनी अभी उन घरों तक नहीं पहुंची 
जो जिंदगी भर अंधेरों से लड़ते रहें हैं। 

कौन सच्चा और कौन झूठा कैसे जाने 
चहरे तो सभी नकाबों से ठकते रहें हैं। 

उन पेड़ों की सुरक्षा अभी भी नहीं हुई 
जो सदा राहगीरों को छांव देते रहें हैं। 

मिट्टी के पक्के घड़े खन्न-खन्न बोलते हैं 
वो सदा तप - तप कर निकलते रहें हैं। 

चुनाव में आश्वासनों की रेवड़ी बाँटते हैं 
चुनावों के बाद सदा मुँह फेरते रहें हैं। 

समृद्धि आज भी उनके घर नहीं पहुंची 
जो खेतों में अन्न उगा सबको देते रहें हैं। 

झोपड़ों के भाग्य पर जो आँसू बहाते हैं 
वो अपने सोने के महल बनवाते रहें हैं। 




Monday, January 13, 2025

अब भी गांव के खेतो में अलगोजा तो बजता होगा

पत्थर वाली पाटी पर हम बारहखड़ियाँ लिखते थे 
छुट्टी की बेला में सब खड़े होकर पहाड़े बोलते थे 
सारे साथी बिछुड़ गये मिलना अब मुश्किल होगा 
अब भी गांव के खेतो में अलगोजा तो बजता होगा। 

मेरे सपने में आकर गांव आज भी मुझे बुलाता है 
सारी सारी रात गांव की गलियों में मुझे घूमाता है 
गांव का कोई साथी मुझको भी याद करता होगा 
अब भी गांव के खेतो में अलगोजा तो बजता होगा। 

होली पर चंग  की धाप आज भी खूब लगती होगी 
सावन की तीज पर गोरियाँ घूमर भी घालती होगी 
झूमझूम बादल गांव में आज भी खूब बरसता होगा 
अब भी गांव के खेतो में अलगोजा तो बजता होगा। 

गुवाड़  में चिलम  की बैठक आज भी जमती होगी 
गौधूली बेला मंदिर में झालर आज भी बजती होगी
गांव का खेत आज भी चौमासा में तो लहराता होगा 
अब भी गांव के खेतो में अलगोजा तो बजता होगा। 

कर श्रृंगार गगरी ले पनिहारी पनघट तो जाती होगी 
खेतों में मौर नाचते कोयलिया तो गीत सुनाती होगी 
सावन महीने में गड़रिया मेघ मल्हार तो गाता होगा 
अब भी गांव के खेतो में अलगोजा तो बजता होगा। 



Friday, January 3, 2025

नई राह पर चली लाडली।

बड़ी  लाडली  नटखट थी 
गोदी  में  खेला करती  थी
उस गोदी को सुनी करके 
नई राह पर चली लाडली। 

रुनझुन वाला आँगन छोड़ा 
पूजा  राणा नाम  भी छोड़ा 
अपना जीवनसाथी चुन कर 
नई राह पर चली लाडली।  

मन में खुशियों को भर कर 
श्वांसों में मधुर मिलन लेकर
आशाओं के दीप जला कर
नई  राह पर चली लाडली। 

सपनों का एक नीड़ सजाने 
प्यार भरा एक जीवन जीने 
खुशियों का  संसार  बसाने 
नई  राह पर चली लाडली।