Sunday, September 7, 2014

आओ आपा उछब मनावां (राजस्थानी कविता)

महालया रे दिन
बरसा न बरस स्यूं
आपा देवा निमंत्रण 
बुलावा छोटी - छोटी 
कुँवारी कन्यावां ने 

धौवां बारा पगल्या
पुंछ गमछा स्यूं
लगावां कुंकु अर 
करा नमन समझ 
दुर्गा रे उणियारै

माथै तिलक लगावां 
देवां मोकळो सामान
जको काम आवै
पढने-लिखणे मांय 

बूढी'र विधवां रो भी
करा आपा सम्मान
देवां बानै भी पैरण 
ओढ़ण रो सामान

जीवण री आपाधापी स्यूं
थोड़ो टेम काढ़ 'र आवो
नवरात्रा के दिना मांय

आपा सगळा सागै मिल 'र
पुजा कुँवारी कन्यावां नै
देवा कपड़ा बूढी'र विधवाओं ने
नवरात्रा के दिना मांय।


NO 

4 comments:

  1. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  2. राजस्थानी बहुत प्यारी बोली है इसमें कही गयी बात सीधी दिल में उतरती है
    सभी स्त्री वर्ग का सम्मान करना और उन्हें देवी मानना हमारी विरासत में है
    अच्छी सोच और गजब का लेखन

    स्वागत है मेरी नवीनतम कविता पर रंगरूट

    अच्छा लगे तो ज्वाइन भी करें
    आभार।

    ReplyDelete
  3. दिल से आभार आपका।

    ReplyDelete
  4. यशोदा बहन आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

    ReplyDelete