बालपने मुख माटी खाई
मुख में तीनो लोक दिखायासूखे तंदुल चाव से खाकर
बाल सखा का मान बढ़ाया
मीरा का विष अमृत कीनो
द्रोपद सूत को चिर बढायो
ग्वाल-बल संग धेनु चराई
गोपियन के संग रास रचायो
इंद्र कोप करयो ब्रज ऊपर
अँगुली पर गोवर्धन धारयो
पापी कंस को मार गिरायो
कपटी कौरव वंस मिटायो
गीता ज्ञान दियो अर्जुन को
समर भूमि में बने खेवैया
कुँज गली में माखन खायो
कालिदेह के नाग नथैया
नाना रूप धरे प्रभु जग में
धरुँ ध्यान इस सूरत से
इतनो सुन्दर रूप तिहारो
अंखियां हटे नहीं मूरत से।
[ यह कविता "एक नया सफर" में प्रकाशित हो गई है। ]
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