मेरी अंधियारी राहों में
ज्योति दीप जलाया तुमने
बूँद-बूँद में अमृत भर
जीवन आश जगाई तुमने
जीवन के सुख-दुःख में
मेरा साथ निभाया तुमने
मेरे लिखे प्रेम गीतों को
मेरी प्रति छाया बन कर
मुझको अंग लगाया तुमने
मेरे जीवन के हर रंग में
इंद्रधनुष सजाया तुमने
मेरे चंचल नयनों में
राधा बन कर आई तुम
मेरी जीवन की बगियाँ में
सावन बन कर बरसी तुम
नाम भगीरथ रख कर भी
मै ला न सका गंगाधारा
तुम बनी स्वाती की बूँद
लेकर सागर से जल खारा ||
[ यह कविता "एक नया सफर" में प्रकाशित हो गई है। ]
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