तारण हार बन आई गंगा
शिव की जटाओ में उतर
कैलाश से निचे आई गंगा
हिम शिखरों को लगा अंग
बल खाती हुई आई गंगा
नदी नालो को लेकर संग
देश की नियंता बनी गंगा
अपने पथ को हरित बना
गावों को समृद्ध करे गंगा
पान करा अमृत सा जल
सागर से जाय मिले गंगा
घाटो पर सुन्दर तीर्थ बने
जीवन दायिनी मोक्ष दायिनी
अन्तिम साँस थमे तट पर
बैकुंठ की सीढ़ी बने गंगा
दुखियों के दुःख को दूर करे
संतो की शरण स्थली गंगा
जीवन दायिनी मोक्ष दायिनी
भव सागर पार करे गंगा
बैकुंठ की सीढ़ी बने गंगा
दुखियों के दुःख को दूर करे
जीवन के पाप हरे गंगा।
[ यह कविता "एक नया सफर" में प्रकाशित हो गई है। ]
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